आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय गोपाल नारायण जी इस अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करे.
बढ़िया लघुकथा है आ. डॉ. गोपाल नारायन सर. आ. योगराज सर की बात से मैं भी सहमत हूँ. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बहुत मार्मिक लघु कथा बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० गोपाल भाई जी
प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय
कान’
जेठ की बेटी की शादी संपन्न हो गई थी I विदाई की तैयारियाँ चल रहीं थीं I पर सीता सबसे अलग थलग अपने में खोयी थी I उसका पूरा ध्यान अपने पल्लू में बंधी उस छोटी सी चीज़ पर था I
आज से लगभग दो महीने पहले सीता अपने दुखों का पिटारा लेकर एक स्वामी जी के पास गई थी I अपने ससुराल में खुश नहीं थी वो I सुबह शाम उसे ये सोच खाए जाती थी कि ससुराल वाले उसके खिलाफ उसके पति के कान भरते रहते हैं I तब स्वामी जी ने उसे ये चमत्कारी चीज़ दी थी I कान की आकृति वाली इस छोटी सी चीज़ को कानों के पीछे चिपकाते ही दूर चलने वाला वार्तालाप या फुसफुसाहट सुनी जा सकती थी I स्वामी जी ने सीता को ये हिदायात भी दी कि इस कान का पहला परिक्षण किसी पारिवारिक आयोजन के दौरान ही होI
पति और जेठानी उसकी तरफ देखकर कुछ बातें कर रहे थे I कान के उपयोग का सही समय जान, सीता ने पल्लू टटोला पर ‘कान’ वहाँ नहीं थाI वो घबराकर पल्लू झाड़ने लगी I
“भाभी! आप ये तो नहीं ढूँढ रहीं ? मुझे ये यहीं घास में पड़ा मिला है I” ननद हाथ में ‘कान’ लिए खड़ी थीI
“ हाँ हाँ ये मेरे बुंदों के पीछे की कील हैI दिखने में अजीब है न?” अपनी घबराहट छिपाते हुए वो बोली I
“ मुझे पता है ये क्या है I ऐसा ही ‘कान’ मुझे भी स्वामी जी ने दिया था तीन साल पहले I” ननद मुस्कुरा रही थी I
“क्या ! फिर ?’’ सीता अवाक थी I
“फिर क्या! बीमार कर दिया इसने मुझे I न ढंग से नींद आती न खाना पचता I हमेशा इसे चिपकाये बातें सुनती रहती और सबसे खिंची रहती I और फिर एक दिन ..”
“ क्या ..क्या किया ?’’ सीता बेसब्र हो रही थी I
“झोंक दिया मुए को आग में I अब बहुत खुश हूँ I’’ ननद के चेहरे पर गहरी राहत थी I
सीता कुछ और पूछती उसके पहले विदाई लेती भतीजी पास में आ गई I
“ बुआ जा रही हूँ I” रोती हुई वो ननद के गले लग गई I
“खुश रहना लाडो और देख बेकार की यहाँ वहाँ की बातों में कभी कान मत देना I” भतीजी का सर सहलाती हुई ननद ने भेद भरी मुस्कान सीता पर डाली I
“ चाची अपना ध्यान रखना I आप ढंग से खाती पीती नहीं हैं I” भतीजी सीता के गले लग कर सुबकने लगी I
“ खुश रहना बिटिया और हाँ, बुआ की कही बातों का ध्यान रखना I” उसको प्यार से सहलाते हुए आज सीता बहुत हल्का महसूस कर रही थी I
“ तो भाभी क्या सोच रही हो ?” भतीजी के आगे निकल जाने पर ननद ने सीता का हाथ अपने हाथ में ले लिया I
“ सोचना क्या है, अभी जाकर झोंकती हूँ इस मुए को आग में I”
पत्नी और बहन को साथ में खिलखिलाते हुए देख, दूर खड़ा सीता का पति भौंचक्का था I
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
हार्दिक आभार आदरणीया बरखा जी
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक जी
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