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ग़ज़ल- बलराम धाकड़ ( मसौदा भी ज़रूरी है...)

1222,1222,1222,1222

ज़रूरी है अगर उपवास, रोज़ा भी ज़रूरी है।
रवाज़ों का ज़रा होना अलहदा भी ज़रूरी है।।

हमें ये फ़ख़्र होता है कि हम हिंदौस्तानी हैं,
हमारे बीच हमदर्दी का सौदा भी ज़रूरी है।

मनाने रूठ जाने के लिखे हों क़ाइदे जिसमें,
मुहब्बत के लिए ऐसा मसौदा भी ज़रूरी है।

किसानों के लिए बिजली ओ पानी ही नहीं काफ़ी,
उन्हें ख़सरा, ख़तौनी और नक़्शा भी ज़रूरी है।

निज़ामो को ये लाज़िम बात समझाए कोई जाकर,
सकोरा लाज़िमी तो है, परिंदा भी ज़रूरी है।

इन आँखों को महज़ सुरमा औ काजल ही नहीं काफ़ी,
इन्हें उम्मीद, बीनाई औ सपना भी ज़रूरी है।

मौलिक/अप्रकाशित
- बलराम धाकड़।

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Comment by Balram Dhakar on February 25, 2018 at 12:08am

जनाब तस्दीक़ साहब, सुख़न नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 25, 2018 at 12:07am

आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आपकी समझाइश और सुझाव हमेशा ही बेशकीमती और इसीलिये शिरोधार्य होते हैं। इस्लाह के मुताबिक सुधार कर लूँगा, सर।
सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 25, 2018 at 12:06am

बहुत बहुत धन्यवाद, आ० राम अवध जी।

सादर।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 7:50pm

जनाब बलराम साहिब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।   मुहतरम समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान दीजिएगा ।

शेर3 का सानी यूँ कर सकते हैं "मुहब्बत के लिए पक्का इरादा भी ज़रूरी है"

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 6:05pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग्गज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

"हमे ये फ़ख़्र होता है कि हम हिंदौस्तानी हैं'

इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी बढ़ जायेगी :-

'हमे ये फ़ख़्र हासिल है कि हम हिंदौस्तानी हैं'

और सानी मिसरा यूँ कर लें तो उचित होगा:-

"हमारे बीच हमदर्दी का जज़्बा भी ज़रूरी है'

'मुहब्बत के लिए ऐसा मसौदा भी ज़रूरी है'

इस मिसरे में 'मसौदा' ग़लत है,सही शब्द है "मुसव्विदा",देखियेगा ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 21, 2018 at 11:22pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है।बधाई स्वीकारें

Comment by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 8:10pm

हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आ० कल्पना जी ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 8:09pm

बहुत बहुत धन्यवाद, आ० श्याम जी।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 8:08pm

बहुत बहुत शुक्रिया, जनाब उस्मान साहब। आपको ग़ज़ल पसन्द आई, मेरा लिखना मुक़म्मल हुआ।

सादर।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 21, 2018 at 7:16pm

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने आ बलराम जी | हार्दिक बधाई भैया| 

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