आदरणीय साथिओ,
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रचना के अनुमोदन , उत्साहवर्धन और इस्लाह को सर आँखों पर लेते हुए बहुत-बहुत आभार ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, प्रदत्त विषय को परिभाषित करती ज़बरदस्त ,सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
बहुत बढ़िया रचा आपने प्रदत्त विषय पर ,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आ.मोहम्मद आरिफ़ साहब।
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया जानकी वाही जी ।
माता पिता को दिखाए और स्वयं देखे स्वप्न पूरे नहीं हो सके तो दिवास्वप्न हो गए I नायिका का सन्यासिन बन जाना थोडा अटपटा है I कथा का शिल्प और प्रस्तुतीकरण बांधे रखता है , हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी ।
आ. भाई आरिफ जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, पत्र शैली में बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा : 1. मगर भुला नहीं सकी। 2. कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 3. मैंने भी आपको तरह-तरह के सपने दिखाए 4. जब से दरिंदे ने मेरे साथ गलत किया था 5. मैं अपना जो निर्णय बताने जा रही हूँ
लघुकथा के अन्त के सन्दर्भ में आदरणीय योगराज सर से सहमत हूँ. सादर.
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार । आपने जिन त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया है उसे संकलन में सुधार का आग्रह आदरणीय प्रधान संपादक से करूँगा ।सादर ।
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