आदरणीय साथिओ,
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आद0 विनय कुमार जी सादर अभिवादन। आदिवासियों के साथ फोटो तो ले सकते हैं पर साथ चल नहीं सकते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है पर क्या कीजिये। बेहतरीन लघुकथा पर मेरी कोटिश बधाइयाँ। सादर
रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आ सुरेंद्र नाथ सिंह जी
जनाब विनय कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का अच्छा प्रयास हुआ है ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'जंगल से गुज़रते हुए उसकी निगाह सड़क के चारो तरफ़ घूम रही थी'
सबसे पहली बात ये कि जंगल में सड़क नहीं होती,उसे पगडंडी कहते हैं,ये जुमला यूँ होना था:-
"जंगल की पगडंडी पर कार से गुज़रते हुए उसकी निगाहें चरों तरफ़ घूम रही थीं"
'अचानक उसकी निगाह सड़क के किनारे बैठे एक स्थानीय आदिवासी युवक पर पड़ी'
इस पंक्ति में स्थानीय शब्द भर्ती का है"अचानक उसकी नज़र पगडंडी के किनारे बैठे एक आदिवासी युवक पर पड़ी"
बहुत बढ़िया सुझाव। शुक्रिया।
रचना को इतनी बारीकी से पढ़ने और विवेचना करने के लिए बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब. वैसे अब जंगल सडकों से पटा पड़ा है, हाँ एक समय था जब पगडंडियां हुआ करती थीं. आपकी दूसरी बात से सहमत हूँ कि स्थानीय को हटाया जा सकता है. आशा है आगे भी आप इसी तरह मार्गदर्शन करते रहेंगे
आपकी बात सही हो सकती है,लेकिन "जंगल" शब्द का अर्थ होता है,'जहाँ दरख़्तों की बहुत बड़ी तादाद हो,ये अलग बात है कि आज दरख़्तों को काटने का जो सिलसिला शुरू हो गया है उसके कारण जंगल ख़त्म होते जा रहे हैं,लेकिन जंगल शब्द आते ही गुंजान दरख़्तों का ही तसव्वुर उभरता है,साहित्य के क्षेत्र में जब भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसके सही अर्थ के साथ ही किया जाता है,या फिर आज के माहौल में इसका अर्थ ही बदलना होगा,ये एक ऐसा बारीक नुक्ता है जो बहुत ही ग़ौर तलब है, वरना जो सड़कों से पटा पड़ा हो वो जंगल कैसे हो सकता है ।
अगर सड़क का ज़िक्र लाज़मी है तो आपको "जंगल" शब्द हटाकर "गाँव" लिखना होगा, "गाँव से गुज़रते हुए उसकी निगाह सड़क के चारों तरफ़ घूम रही थी" उम्मीद है आप मेरी बात पर ग़ौर फरमाएँगे ।
जी सहमत हूँ आपसे, आभार आदरणीय
मैं भी आद0 समर साहब की बात से सहमत हूँ। सादर
आ.समर कबीर साहब जी, आजकल कई हाइवे जंगल के बीच से भी गुज़रते हैं।जैसे जिम कार्बेट नेशनल पार्क में नैनीताल जाने वाली सड़क या कई अन्य भी।सादर।
जानकी जी शायद आपने मेरी टिप्पणी ध्यान से नहीं पढ़ी,एक बार और पढ़ें ।
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब मैं आपकी टिप्पणी से अक्षरश: सहमत हूँ । बहुत ही बारीक़ नुक्ता निकाला आपने । आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है और साथ में आपने समाधान भी सुझाया तो दुगुना लाभ मिला । सादर ।
बहुत अच्छी लघुकथा है भाई विनय कुमार सिंह जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.
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