आदरणीय साथिओ,
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अवश्य करें।
अनुमति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब।
हड़ताल - लघुकथा –
बाबूलाल जानवरों के बाड़े में गाय और भेंस को चोकर की सानी लगा कर जैसे ही बाहर निकला, भेंस ने नांद में पड़े चारे को अनदेखा करते हुए, धीरे से फ़ुसफ़ुसाते हुए पास के खूँटे में बंधी गाय को पुकारा,
"तुमने कुछ सुना जीजी, गज़ब हो गया"?
"क्या हुआ, हमने तो कुछ भी नहीं सुना"?
"अरे वह सफ़ेद वाली मुर्गी आई थी मेरे पास। मालिक ने चार दिन पहले उसके मुर्गे को पका कर मेहमानों को खिला दिया"।
"तो इसमें क्या नयी बात है"?
"अरे आप पूरी बात तो सुनो"?
"बोलो आगे बोलो"?
"उस मुर्गी ने इस कारण उस दिन से ही हड़ताल कर रखी है"।
"कैसी हड़ताल"?
"उसने अंडे देना बंद कर दिया है"?
"उससे क्या होने वाला है"?
"वह हमसे मदद माँग रही थी कि हम लोग भी उसका साथ दें और दूध देना बंद कर दें तो मालिक की अकल ठिकाने लग जायेगी"?
"पगला गयी है।उसको समझाओ बहिना।यह शेखचिल्ली वाले सपने देखना बंद करे"।
"तो क्या सच में हम उसकी मदद नहीं कर सकते"?
"अरे मेरी भोली बहिन, तुम किस दुनियाँ में जी रही हो। मालिक एक इंसान की औलाद है।उसकी नस नस में इंसानी फ़ितरत भरी पड़ी है।वह हमारे जैसा नहीं है।इन हथकंडों से वह रत्ती भर भी पिघलने वाला नहीं है"।
"क्या हमारी मदद भी उसके काम नहीं आयेगी"?
"अरे बहिना, इस लफ़ड़े में मत पड़ो वरना हम भी कसाई को बेच दिये जायेंगे"।
"तो अब आगे क्या होगा"?
"होगा वही जो मालिक चाहेगा"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय पर आपने अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब। आपको लघुकथा अच्छी लगी तो दिल खुश हो गया।
वाह! बड़े ही कमाल की बेहतरीन लघुकथा।सहज प्रवाह, कसी हुई और अनदेखा दर्द भी । मुर्गी ने दिवास्वप्न्न भी देखा तो ऐसा जो स्वप्न ही रह गया।बड़ा अनकहा छुपा है इस कथा में।इस शानदार कथा के लिए हार्दिक बधाई आ.तेज वीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय जानकी जी।आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी मेरे लिये बहुत प्रेरणादयक एवम उत्साह वर्धक है।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा कही आपने, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर।
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय तेज़ वीर जी , बहुत २ बधाई आपको ,सादर
प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी, इंसानी फितरत के चेहरे से नकाब उठाती यह रचना बहुत ही प्रभावशाली है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी ।आपकी टिप्पणी मेरे लिये आशीर्वाद तुल्य है।
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