For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था'

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम

सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था

बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत

औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था

वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं

मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था

सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे

सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था

बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे

फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था

समर कबीर

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1261

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 10:22pm

दोष बताने के लिए आपका भी शुक्रगुज़ार हूँ' ये जुमला लिखने से रह गया,क्षमा ।

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 10:16pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ  ।

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 10:14pm

जनाब अजय तिवारी जी आदाब,

'गिरते गिरते भी सँभलना चाहिये

वक़्त के साँचे में ढलना चाहिये

नज़्म-ए-बरहम को बदलना है तो फिर

पहले हमको ख़ुद बदलना चाहिये'

आलोचना क्या होती है और उसे कैसे तहम्मुल से लेना चाहिये, इसी मक़सद को सामने रखते हुए ये ग़लती की,रचना किसी की भी हो अगर उसमें कुछ दोष है तो उसे ज़रूर बताना चाहिये, और जिसे बताया जा रहा है उसे भी सहर्ष स्वीकार करना चाहिये, उस पर बिला वजह बह्स नहीं करना चाहिये, क्योंकि इस मंच का यही मक़सद है, इसलिये उस मक़सद पर हमें पूरी ईमानदारी से अमल करना चाहिये ।

मैं जानता था कि मेरी ग़ज़ल का मतला क़ाफिये के लिहाज़ से दोषपूर्ण है, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैंने ये ग़ज़ल मंच के एक सम्मानीय सदस्य हर्ष महाजन साहिब की ग़ज़ल के बाद उन्हें कुछ सिखाने के लिये मैंने ये ग़ज़ल मंच पर पोस्ट की,और आपको ये जानकर हैरत होगी कि मात्र दस मिनट में कही ।

आपकी टिप्पणी से पहले जनाब निलेश साहिब ने मुझे ज़ाती तौर पर मतले के दोष के बारे में बता दिया था,फिर आज आपकी टिप्पणी आ गई,जिसका मुझे इन्तिज़ार था,मैं तस्लीम करता हूँ कि मतला दोषपूर्ण है,'जग' और 'हट' दोनों ही शब्द बा मा'ना हैं,इसलिये ये दोष होगया,जैसा कि सब जानते ही हैं कि ग़ज़ल में क़वाफ़ी मतला तय करता है,जब मतला ही दोषपूर्ण हो तो बाक़ी अशआर भी बेकार होकर रह जाते हैं ।

मैं जनाब निलेश साहिब का बेहद शुक्रगुज़ार ।

ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए भी आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

अब मतला यूँ पढ़ें:-

'सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

ख़्वाबों मेरे आपको आना ही नहीं था'

Comment by Sushil Sarna on March 20, 2018 at 8:32pm

सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

पर्दा रूख़-ए-रौशन से हटाना ही नहीं था

बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत

औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था

वाह सर वाह क्या अशआर हैं ... खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Ajay Tiwari on March 20, 2018 at 1:49pm

आदरणीय समर साहब, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

मतले में ईता है : लगाना = लग + आना , हटाना = हट + आना .  लग और हट काफिया नहीं हो सकते.

वैसे इस तरह की गलतियों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता. बहुत सारे लोगों ने ऐसे काफिये इस्तेमाल किये हैं . 

सादर  

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 10:45am

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

टंकण त्रुटि की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 20, 2018 at 9:28am
जनाब समर साहब,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद,
ज़माना ही नहीं थी.. हो गया
इसे था कर लीजिएगा,
Comment by Samar kabeer on March 19, 2018 at 10:54pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 19, 2018 at 10:52pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 19, 2018 at 10:50pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service