आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
‘थाप’
‘सुख महल’ कहती थीं ये चारों अपने इस छोटे से आशियाने को | निशि, सुषमा, रज्जो और घर की मुखिया सुखनी दीदी | ढोली सुरेश भी अक्सर यहीं रहता था |
“ आज तो गजब लग रही हो दीदी !” होंठों पर लाली लगाती सुखनी को देख सुरेश मुस्कुराया |
“तो ! मेरी बहन की मेंहदी है वहाँ गाँव में और मैं यहाँ ऐसे ही सूखी बैठी रहूँ !” सुखनी ने आँखें तरेरते हुए सुरेश को नकली गुस्सा दिखाया |
“ ओहो हाँ ! निशि बता रही थी |’’
“ पहले हम शगुन गायेंगे और फिर सब बाहर खाना खाने जायेंगे|” सुखनी की आवाज़ में बच्चों जैसा उत्साह था |
“निशि बता रही थी आपने शादी में गाँव जाने के लिए परसों का टिकट भी करवा लिया है |” सुरेश सुखनी को आँखों आँखों में टटोल रहा था |
“ हाँ बहुत मन है उन सबसे एक बार मिलने का| परसों छोटी से फोन पर भी बात हुई थी |” सुरेश से आँखें चुराती सुखनी शीशे में अपनी लाली ठीक करने लगी |
“ क्यों अपने आप को धोखा दे रही हो दीदी | इतने सालों में बिना सामने आये पैसे भेजती रहीं, बहनों को पढ़ाया ,बाप का कर्ज उतारा | बस इतना ही बनता है आपका | “ सुरेश की आवाज गहरी थी|
“ ठीक कह रहा है ये दीदी | हमारा कौनसा परिवार ? शर्मिंदगी हैं हम|” पीछे आ खड़ी निशि की आवाज भर्रा गई थी |
“ ख़ुशी के मौके पर क्या बिसूर रहे हो दोनों | चल बैठ और शुरू कर शगुन के गाने |” सुखनी ने ढोलक निशि की तरफ खिसका दी |
“ दीदी नाराज मत होना| खुद को रोक नहीं पाया ये सब कहने से|” घिर आई आँखों को पोंछने लगा सुरेश |
“ मुझको भी पता है रे | हम किन्नरों का कौनसा परिवार ? पर कभी कभी सोचने में अच्छा लगता है बस्स | टिकट लाती हूँ केंसल मार के आजा |” सुरेश की पीठ में धौल जमाते सुखनी अपनी आवाज का गीलापन छिपा नहीं पाई|
“ बन्नोंSS तेरी मेंहंदी ..|” ढोलक की थाप पर निशि की मर्दानी आवाज सुख महल में गूँज रही थी |
मौलिक व् अप्रकाशित
वाह वाह, क्या ही सुंदर लघुकथा कही है आ० प्रतिभा पाण्डेय जी. थर्ड जेंडर की वेदना बहुत ही मर्मस्पर्शी तरीके से उभर कर सामने आई है. बहुत बहुत बधाई प्रेषित है.
थर्ड- जेंडर/किन्नर-विमर्श पर बेहतरीन भावपूर्ण सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी। बेहतरीन शीर्षक और आरम्भ! शुरू में लगा भागी हुई/भगाई गई/ बेची गई लड़कियों कीअपनकीपरिवारों की याद और अपने को किसी तरह ख़ुश रखने पर केंद्रित है यह रचना। किंतु उत्तरार्ध पर ट्विस्ट आता है और पता चलता है कि यह तो किन्नर रूपी हिना है जो पिस-पिस कर दूसरों/परिवारजन की ज़िंदगी में ख़ुशी के रंग भम दिया करती है। स्वयं पराजित योद्धा की तरह! हालांकि 'थाप' और ' सुख-महल' : इन शब्दों से सरप्राइज एलीमेंट ख़त्म होने लगता है!
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय प्रतिभा जी ,बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए ,सादर
हार्दिक आभार आदरणीया बरखा जी
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आदाब,
प्रदत्त विषय पर बेहतरीन लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
बढ़िया रचना हुई है। बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |