आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक आभार आदरणीय विजय शंकर जी ।
लघुकथा---दिलवाला(भारत)
–--------------------------------
मोहन बाबू सवेरे सवेरे चाय की चुस्की लेते हुए पत्नी राधा को अख़बार की हेडिंग पढ़ कर सुना रहे थे कि अमेरिका ,कुवैत ,ओमान,सऊदी अरब आदि देशों में कार्यरत भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है ।अचानक दरवाज़े पर घंटी बजती है ,वो अख़बार छोड़ कर जैसे ही दरवाज़ा खोलते हैं ,तो बेटे राजेश को देख के हैरत में पड़ जाते है और तुरन्त पूछते हैं ,"बिना किसी फ़ोन या सूचना के यकबयक कैसे आना हुआ ?"
राजेशजवाब में कहता है,"अमेरिका के हालात अच्छे नहीं हैं ,भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है "।
मोहनबाबू अंदर आते हुए फिर कहते हैं ,"बेटा यहां के हालात अच्छे होते तो तुम्हें नौकरी करने अमेरिका क्यूँ जाना पड़ता ,यहां नौकरी डिज़र्व को नहीं रिज़र्व को मिलती है "।
राजेश पिता जी को उदास देख कर फौरन कहने लगा ,"आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं ,वहां के अनुभव के आधार पर मुझे बैंगलोर में नौकरी मिल गई है ,अगले हफ्ते जॉइन करना है "।
यह सुनते ही मोहन बाबू की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे ,वो गले लगाते हुए कहने लगे ,"भारत का दिल बहुत बड़ा है ,यहां पता नहीं कितने विदेशी लोग बरसों से नौकरी कर रहे हैं लेकिन उन्हें भारत में कभी नौकरी से नहीं निकाला गया ,हैरत है विदेशों में भारतीयों को निकाला जा रहा है "।
राजेश फ़ौरन पिता जी के ख़ुशी के आँसू पोंछ कर कहने लगा ,"अपना भारत महान "।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
वर्तमान में हर देश में रोज़गार को लेकर त्राहिमाम मचा है । किसी भी देश में रोज़गार की कोई गारंटी नहीं है । हमारे देश में भी यही बात लागू होती है । युवा भटके हुए हैं । इस लघुकथा में आरक्षण के प्रति धीमा आक्रोश भी नज़र आ रहा है जो स्वभाविक भी है ।
हमारे देश में रोज़गार के मामले में स्थिति भी बेहतर है । हज़ारों को बेदखल नहीं किया जाता है । बहुत ज
ज्वलंत मुद्दा उठाया आपने । बहुत ही सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,लघुकथा पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
देश की पलायन करती प्रतिभा की वापिसी का प्रयास देशप्रेम का जज़्बा स्पष्ट करता है बधाई आद० तस्दीक़ अहमद खान जी ।
मुहतरमा नीता साहिबा ,लघुकथा पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ां साहिब, लघुकथा में निहित सार्थक संदेश इस लघुकथा की ख़ूबसूरती है। हॉं लघुकथा का ताना बाना थोड़ा उलझ सा प्रतीत हो रहा है।'डिज़र्व' और 'रिज़र्व' पंक्ित के माध्यम से आरक्षण पर भी व्यंग्य कसा गया है। लघुकथा का शीर्षक चयन प्रभावशाली है। इस सार्थक लघुकथा हेतु शुभकामनाएं निवेदित हैं। सादर
आ.जनाब रवि साहिब ,आपकी लघुकथा पर खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब, प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरम जनाब समर साहिब आदाब ,लघुकथा पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, अच्छी कथा हुई है हार्दिक बधाई ।
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |