आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय शशि बंसल जी।बहुत अच्छी लघुकथा।इस गोष्ठी में मुझे यह लघुकथा बहुत उत्तम लगी।हालाँकि पौराणिक चरित्रों पर लिखना बेहद चुनौती पूर्ण कार्य होता है।जिसे आपने बेहद संजीदगी से निभाया है।पुनः बधाई।
सादर आभार एवम धन्यवाद आद0 तेजवीर सिंह जी ।
सादर आभार एवम धन्यवाद आद0विनय कुमार जी ।
भारत के नाम में भारतीयता की शी झाँकी पेश की है आपने आदरणीया। बधाई आपको।
सादर आभार एवम धन्यवाद आद0 मनन कुमार सिंह जी ।
पौराणिक पात्रों /घटनाओं को विषय बनाकर लघुकथा कही जाती रही है, लेकिन उसमे अपनी कल्पनाशीलता का पुट डालकर. मगर इस लघुकथा में आपकी कल्पनाशीलता कहाँ है प्रिय शशि जी? आपने तो सती अनुसुईया जी का किस्सा लगभग हूबहू वैसे ही चस्पाँ कर दिया है जैसा कि हम बचपन से पढ़ते सुनते आ रहे हैं. यदि मैं गलत हूँ तो कृपया मार्गदर्शन करें.
दरअसल मुझे भी ऐसा कुछ लगा था। इस बेहतरीन सृजन में उपरोक्त टिप्पणी के अनुसार परिमार्जित किया जा सकता है। हार्दिक आभार आदरणीय मंच संचालक महोदय।
आद0 योगराज प्रभाकर सर जी , पूरी तरह सहमत हूँ आपकी बात से ।घटना हूबहू वही ही है बस सम्वाद अपनी कल्पना से लिखे हैं । इसे लिखते समय इस बात का भलीभाँति भान था कि मेरी ओर से कल्पना का समावेश सिर्फ अंतिम सम्वाद में ही हुआ है । क्योंकि महर्षि अत्रि ने ऐसा नहीं कहा था । इसको यथावत रखने का कारण सिर्फ भारतीय स्त्री की गौरवमयी इतिहास को बताना था कि भारत का एक ये भी रूप है ।अतः इसमे अधिक फेरबदल करना उचित नहीं लगा मुझे । ये पौराणिक पात्रों पर प्रथम अभ्यास था बहुत चिंतन मनन के बाद ही पोस्ट किया । सिर्फ यह सोचकर भारत की असल तस्वीर ये भी रही है ।
आपकी प्रतिक्रिया सदा सोच के नए द्वार खोलती है , हृदय से आभारी हूँ इस विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए ।
मुहतरमा शशि बंसल साहिबा , सुंदर लघुकथा हुई है प्रदत्त विषय पर ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
सादर आभार एवम धन्यवाद आद0तस्दीक अहमद खान जी ।
आदरणीया शशि बंसल जी आदाब,
प्रयास बेहतरीन । आयोजश में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करेंं । गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
मोहतरमा शशि बंसल जी आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का प्रयास अच्छा है,लेकिन इसमें आपका ख़ास अंदाज़ नज़र नहीं आया, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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