परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 97 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब वाली आसी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"दूर तुझ से ये ज़मीन-ओ-आसमाँ हो जाएँगे"
2122 2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ़)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब राज़ नवादवी साहिब ग़ज़ में शिरक़त और सुख़न नवाज़ी पर मश्कूर हूँ
बहुत सुंदर।
झरने के जैसे ऊपर से नीचे बहती खूबसूरती
जनाब अजय गुप्ता साहिब आप की मुहब्बतें का शुक्रिया
बहुत सुंदर ग़ज़ल, बधाई हो।
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय अफ़रोज़ सहर जी। मक़्ते के लिए विशेसज बधाई स्वीकार करें
मुहतरमा अंजलि गुप्ता साहिबा सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया
आ. अफ़रोज़ जी,
उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई
.
क़त्ल भी गर वो करें तो ज़िक्र तक होता नहीं।
आह भी जो हम भरेंगे सुर्ख़ियाँ हो जाएँगे।। यहाँ आह स्त्रीलिंगी है अत: रदीफ़ काम नहीं कर रहा है..
दोनों मिसरों का काल भी भिन्न है अत ऊला में होगा नहीं आना चाहिए
सादर
जनाब निलेश नूर साहिब ग़ज़ल में शिरकत पर आपका मश्कूर हूँ,
शे'र " क़त्ल भी गर वो करें तो ज़िक्र तक होता नहीं"
" आह भी गर हम भरेंगे सुर्ख़ियाँ हो जाएँगे" पर आपकी टिप्पणी जल्दबाज़ी में दी गई लगती है,
शे'र पर नज़्र ए सानी करने की ज़हमत गवारा फ़रमाएँ सादर,,
आ. अफ़रोज़ जी,
टिप्पणी करने से पहले मैंने ठीक से शेर पढ़ और समझ लिया था .. अब टिप्पणी का मर्म समझिये ..
क़त्ल भी गर वो करें तो ज़िक्र तक होता नहीं.....क़त्ल भी गर वो करें तो.... यानीं एक संभावना है ..क़त्ल हुआ नहीं अबतक अत: ज़िक्र के न होने का भाव काल्पनिक है.. इसलिए ज़िक्र तक होगा नहीं... एक संभावना के रूप स्वीकार्य कथन है
मूल शेर में
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता'.. यानी क़त्ल होने पर चर्चा न होने की बात है ..
उम्मीद है आप इस नुक्ते को समझे होंगे.. सानी मिसरे पर आ. समर सर की टिप्पणी भी आ चुकी है अत: उस में बहस गुंजाईश ही नहीं है ..
सादर
बहस की काफ़ी गुंजाईश है हाज़िर होता हूँ सादर
जनाब निलेश नूर साहिब आदाब,
एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, आपने दूसरे पहलू पर तवज्जो नहीं की,
एक जुम्ले पर गौ़र फ़रमाएँ ,
"आप करें तो नेकी हम करें तो गुनाह"
इसका भाव देखिये, अर्थात ये अमल सरज़द हो चुका है तभी तो इसकी शिनाख़्त नेकी और गुनाह के
तौर पर की गई, यहाँ संभावित अमल जैसी कोई बात नहीं है,
"क़त्ल भी गर वो करें तो" "करें तो" यहाँ पर भाव "कर चुके हैं या करते हैं का ही आएगा,
उम्मीद करता हूँ आप मेरी बात समझ गए होंगे,,सादर
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