आदरणीय साथिओ,
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बहुत अच्छी रचना. हार्दिक बधाई.
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई बबीता जी
आदरणीया बबीता गुप्ता जी आदाब,
विषयांतर्गत लाजवाब कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। बाल सुलभ मानसिकता को बड़े ही मनोवैज्ञानिक तरीके से दर्शाया है आपने।बेहतरीन लघुकथा।
सकारात्मक खबर-
अखबार का पन्ना उन्होंने उठाकर किनारे रख दिया, आज फिर सिर्फ नकारात्मक खबरें ही दिखाई पड़ रही थी.
" यह क्या हो गया है समाज को, जहां देखो वहीं सिर्फ हैवानियत, जैसे पागलपन सवार है लोगों पर".
उसने भी अखबार उठाया और जैसे-जैसे वह उसे पढ़ती गई उसका शरीर भी गुस्से से कांपने लगा.
" क्या इसी समाज का सपना देख कर हमारे पूर्वज शहीद हुए होंगे, क्या इन लोगों को कभी इनके हैवानियत की सजा मिलेगी?".
"कानून है बेटा, एक न एक दिन इनको इनके किए की सजा जरूर मिलेगी".
" ऐसे कितने दरिंदों को सजा मिली है पिताजी आज तक, आपने कभी अखबार में पढ़ा है?
अचानक उसकी नजर अखबार के पहले पन्ने पर छपी दो अलग-अलग खबरों पर फिर से पड़ी. और फिर उसने एकदम से पिताजी से कहा " पिताजी इन खबरों में से एक खबर सकारात्मक भी है".
उन्होंने भी दोबारा अखबार को देखा एक एक तरफ बच्चियों से बलात्कार की ख़बर तो दूसरी तरफ मॉब लिंचिंग की खबर. वह हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले "इसमें कौन सी खबर तुमको सकारात्मक लगती है".
"पिताजी इन दरिंदों का एक ही इलाज है, वह है मॉब लिंचिंग. जब तक लोग ही इन दरिंदों को सजा नहीं देंगे तब तक इस दरिंदगी में कोई सुधार आने की सूरत नजर नहीं आती"
हिंसा के सख्त विरोधी पिताजी आज न जाने क्यों अपनी बेटी की बातों से सहमत नजर आ रहे थे.
मौलिक एवं अप्रकाशित
हालात दृष्टि और दृष्टिकोण में अंतर ला देते हैं। अपराधियों के दीर्घ लंबित मामलों और जेल में उनके सुरक्षित जीवनयापन ने बहुत से सवाल उठाए हैं। बहुत ही गंभीर दृष्टि के साथ बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब। सामाजिक सरोकार और क़ानून स्तंभों के मद्देनज़र लघुकथा उद्देश्य संदर्भ में रचना का समापन नकारात्मक संदेश वाहक लग रहा है। क्या क़ानून हाथ में लेने के बजाय किसी सकारात्मक पंचपंक्ति के साथ समापन संभव होगा? सादर।
नकारात्मकता में ही सकारात्मकता है इसमें, क्या ऐसे दरिंदों के लिए और कोई सजा है. बहुत बहुत शुक्रिया आ शेख सहजाद भाई
आदरणीय विनय कुमार जी, कहना चाहूंगा कि ... बहुत से मनोवैज्ञानिक शोधात्मक उपाय संभव हैं, जैसे स्वरोज़गार/नैतिक शिक्षा/यौन-शिक्षा व स्वतंत्रता/ देशभक्ति मूलक आचार संहिता संबंधित शैक्षणिक व नागरिकता पाठ्यक्रम व प्रशिक्षण आदि। सादर।
जनाब विनय कुमार साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
बहुत बहुत आभार आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
भीड़ तंत्र के कोनून अपने हाथों में लेने की प्रक्रिया को किसी भी हालात में जायज नहीं ठहराया जा सकता। न्याय व्यवस्था पर चिंता जगाती विचारोत्तेजक रचना। .. हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी
ऐसे दरिंदों के लिए मुझे तो कोई और सूरत नजर नहीं आती, बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पांडे जी
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