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"जाँ" सहीह शब्द है ।
जी जनाब, शुक्रिया ।
यादगार शताब्दी मुशायरे के ख़ूबसूरत आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय अशफ़ाक़ अली जी। सादर।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम कुमार जी
बहुत बढ़िया!...शायद याद किया गया है मुझे।बधाई आदरणीय।
मनन कुमार जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
हिचकियाँ आ रही हैं रह रह कर।
याद शायद किया गया है मुझे ।।
जब कि शादाब है मेरा ,गुलशन,।
नाम सहरा दिया गया है मुझे।।
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय
बंदना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद जनाब अशफाक़ साहब .....बहुत उम्दा शेर हुये हैं ।
नादिर खान आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गुलशन ख़ैराबादी जी, आपकी प्रस्तुति पर दिल से दाद.
इस मुबारक़ आयोजन की आपकी ग़ज़ल से शुरुआत हुई है यह एक मील के पत्थर की तरह है.
ग़ज़ल उम्दा हुई है. ग़िरह का शेर हमें कुछ अधिक ही भाया. यह ज़रूर है कि तकाबुले रदीफ़ को लेकर तनिक सचेत रहना था.
बहरहाल इस उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाइयाँ
शुभ-शुभ
सौरभ जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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