साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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मुहतर्मा कल्पना भट्ट साहिबा,
ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी पर आपका मश्कूर हूँ
आदरणीय अफ़रोज़ साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
जनाबअजय तिवारी साहिब,
ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी परआपका मश्कूर हूँ,,
प्यार करना सिखा गया है मुझे
कोई दिल में बसा गया है मुझे।।
उसका गम भूलना भी मुश्किल है
घाव ऐसा लगा गया है मुझे।।
रोल तेरे फ़रेब का भी है
जो सयाना बना गया है मुझे।।
इक सफ़ल रहनुमा बनूँगा अब
बोलना झूठ आ गया है मुझे।।
पाठ माँ बाप का पढ़ाया हुआ
कामयाबी दिला गया है मुझे।।
वक़्त उस्ताद ज़िन्दगी का है
जो बहुत कुछ सिखा गया है मुझे।।
खूब मिसरा 'समर कबीर' का है
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"।।
अब उसे राख ही मिलेगी नाथ
जो अदा से जला गया है मुझे।।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय सुरेन्द्र भाई बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई शेर दर शेर दाद कबूल कीजिए
आद0 अमित कुमार जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद का शुक्रिया
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपका आशीष मिला, ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका
स्नेह बनाये रखें
जनाब सुरेंद्र साहिब,
मुबरकबाद, इस तख़्लीक पर
आद0 अफ़रोज़ सहर साहब सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी नवाज़िश का शुक्रिया
आद० सुरेन्द्र नाथ जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से मुग्ध हूँ, शुक्रिया आपका
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