आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया बबीता गुप्ता जी आदाब,
स्वावलंबन या उद्यमी बनकर अपने पैरों पर खड़ा होकर बेरोज़गारी के चंगुल से मुक्ति पाई जा सकती है । शासन भी हर स्तर पर न्यूनतम ब्याज़ दर पर ऋण उपलब्ध करवाकर महिलाओं को स्वरोज़गार की ओर प्रेरित कर रही है । लेकिन हमारे देश की औसत मानसिकता यह रही है कि ऋण लो और भू्ल जाओ या अन्य कामों में राशि व्यय कर दो ।
कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं । संवादों में प्रभावशीलता लाकर कथा को प्रभावी बनाया जा सकता था । कथा कहीं -कहीं कथाई अंदाज़ को छोड़ केवल वृत्तांत की तरह लगी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बढ़िया प्रयास हुआ है बबिता जी, सरकारी नीतियों के परिणाम को सहज ही दर्शाने का प्रयास करती इस रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीया.
बहुत बढ़िया पहलू उठाया है आपने इन योजनाओं के कार्यान्वयन का, बहुत बहुत बधाई आपको आ बबिता गुप्ता जी
सरकारी योजनायें काग़ज़ों में ही परवान चढ़ती रही।योजनाओंं का एक पहलू ऐसा भी बधाई कथा के लिये आद०बबिता गुप्ता जी ।
अधिकतर यही होता हैं योजना कागज पर बनती नही वर्ण कागज पर ही कार्यान्वित भी हो जाती हैं ।अगर जनता तक पहुचती भी हैं तो महिलाओं के बदले पति लेते हैं उस पर निर्णय ।ऐसी ही एक कड़वी सच्चाई पर आपने रोशनी डाली हैं हार्दिक बधाई आपको आ. बबिता गुप्ता जी
प्रदत्त विषय पर कटाक्षपूर्ण अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीया बबिता गुप्ता जी।
आदरणीया बबीता गुप्ता जी महिला कल्याण के नाम पर बनी योजनाओं का वास्तविकता से कितना नाता है..इसको बताती बहुत ही सार्थक लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई.
प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा कही है आ० बबीता गुप्ता जी। हालाकि वर्तनी की अशुद्धियाँ बदमज़गी पैदा कर रही हैं। बहरहाल इस लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत बढ़िया बढ़िया विषय चयन और प्रस्तुतीकरण हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता जी
"ख़ुदा ख़ैर करे !" (लघुकथा) :
"दाढ़ी-मूंछों और कपड़ों से तो तुम काफ़ी पढ़े-लिखे मुसलमान ही लग रहे हो! आज किसको वोट दे आये? मस्जिद-तरफ़दारों को या तुम लोगों का तुष्टिकरण करने वालों को या लहर वालों को?" रेलगाड़ी में बैठे सहयात्री से एक सूट-बूट वाले यात्री ने पूछा।
"किसको वोट देता? 'विवादित और मज़हबी' बनाये गये 'ख़ूबसूरत पैग़ाम' देने वाले किसी ख़ूबसूरत फूल को या इंसान के बदनाम कर दिये गये एक अहम 'कर्मशील अंग' को? ग़रीब के किसी वाहन को या बदनाम किये गये किसी पशु को?... या हम पर थोपे गए किसी और लुभावने चुनाव-चिन्ह को?"
"सीधे-सीधे बता दो भाई! नेताओं की तरह पहेलीनुमा जवाब मत दो! पार्टी या प्रत्याशी का नाम बताओ, जिसे तुमने अपना क़ीमती वोट दिया?" उस दाढ़ी-मूंछों वाले के माथे की लकीरें देखते हुए वह बोला।
"पहेली तो मतदाता बन गये और उनकी ज़िन्दगी, जनाब! कौन किस तरफ़ कब बहक जाये, कौन कब बिक जाये, किसका कट्टर मज़हबी रुझान कब जाग जाये, कुछ पता नहीं चल पाता उनके उलझे, दोगले या नीरस रवैए से!"
"बातें मत फेंको भाई! सीधे-सीधे कहो न कि आख़री वाला बटन दबाकर आये, नोटा (N.O.T.A.) वाला!"
"तो क्या हम मुसलमानों को मूर्ख ही समझ रखा है आपने? अरे, उम्मीद, आस्था और विश्वास पर लोकतंत्र टिका हुआ है, तो मतदाता भी उम्मीद के साथ ही किसी न किसी उम्मीदवार को ही वोट देगा न... उम्मीद दिलाने वाली पार्टी को!" दाढ़ी-मूंछों वाले यात्री ने कुछ मूंगफलियां उसकी हथेली में डालते हुए कहा और कुछ मूंगफली-दानों में थोड़ा नमक मिलाकर चबाने लगा।
"हां, सही कहा तुमने! 'नोटा' चुनने से कोई मनचाहा चुनाव-नतीज़ा तो मिलने वाला नहीं! लेकिन एक बात तो है! तुम हिंदी बहुत अच्छी बोल लेते हो, मुस्लिम होते हुए भी! क्या अपनी भाषा 'उर्दू' नहीं सीखी?
"सच्चा हिन्दुस्तानी हूं! हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है! लेकिन उर्दू मुस्लिमों की नहीं, हम हिंदुस्तानियों की ही भाषा है; यहीं पलीऔर बढ़ी! लगता है आप पर भी यहां की नकारात्मक राजनीति का असर कुछ ज़्यादा ही है! इस जम्हूरियत में सब कुछ हम सबसे, हम सबका है! वोट भी मैंने उसी दल को दिया, जो जम्हूरियत का सशक्तिकरण कर सके, भाई!"
"नेक ख़्याल वाले तो लगते हो तुम, लेकिन अबकी बार माहौल, लहर और यंत्र-तंत्र क्या रंग दिखाते हैं, देखते हैं!" दाढ़ी-मूंछों वाले को ऊपर से नीचे तक आश्चर्य से देखते हुए उसने कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
[नोटा (N.O.T.A). = प्रचलित मतदान-मशीन की प्रत्याशी-सूची-कुंजियों में अंतिम कुंजी (बटन) "None of the Above" = "उपरोक्त में से कोई नहीं"]
वाह...।हर व्यक्ति अपने मताधिकार के लिए स्वतंत्र सोच रखने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए ..।
रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर विचार साझा कर मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कनक हरलल्का साहिबा।
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