आदरणीय साथिओ,
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मोहतरम योगराज जी आदाब बहुत ख़ूबसूरत भावुकता से लबरेज़ लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें सादर
दिल से शुक्रिया आ० आसिफ ज़ैदी जी.
बेहतरीन अनुज i एक शानदार रचना I
हार्दिक आभार आदरणीय अग्रज श्री.
मुहतरम जनाब योगराज साहिब , वाह प्रदत्त विषय पर बहुत भावुक और सीख देती खूबसूरत लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आदाब। वाह। बेहतरीन उम्दा सृजन। जिसका नमक खाया है, उसका हक तो अदा करना ही होगा! बेहतरीन क्लासिकल शीर्षक के साथ विषयांतर्गत विचारोत्तेजक प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई और आभार हमें उम्दा सटीक लेखन की यूं सीख देने हेतु आदरणीय योगराज प्रभाकर सर जी। अंत में किसी तरह यदि यह जोड़ें तो? : // जिसका नमक खाया है, उसका हक तो अदा करना ही होगा//
भाई उस्मानी जी, नमक का हक़ अदा करना अर्थात वफ़ादारी. किन्तु प्रदत्त विषय "मोह" हैI
जी। त्वरित मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी।
वाह, बहुत ही खूबसूरत और दिल को छू जाने वाली रचना प्रदत्त विषय पर. इन भावनाओं को समझ पाना आसान नहीं होता लेकिन जो लोग इस बंधन से जुड़ जाते हैं उनसे छूट भी नहीं पाता. बहुत बहुत बधाई आ योगराज सर इस बेहतरीन लघुकथा के लिए
बहुत मार्मिक लघुकथा आदरणीय योगराज सर।
वाह! आज के भौतिकतावादी युग में सार्थक सन्देश देते हुए एक शानदार लघुकथा. इस आयोजन में कुछ लघुकथाएँ सिर्फ़ "लघु" तत्त्व को ही सार्थकता प्रदान कर रही हैं "कथा" तत्त्व को नहीं. उन्हें यह लघुकथा अवश्य पढ़नी चाहिए कि किस तरह एक विचार को कथा में तब्दील किया जाता है. इस लघुकथा को पढ़ते हुए सारा दृश्य स्वतः ही आँखों के सामने से गुज़रता हुआ प्रतीत होता है. //बचपन से ही इसने मुझे और मेरे खानदान को पाला हैI अब इस बुढ़ापे में इसे अकेला छोड़कर चला गया तो मुझे पाप नहीं लगेगा?"// यही भारतीय संस्कृति का मूल तत्त्व है. दिल को छू जाने वाली इस भावना प्रधान लघुकथा के लिए दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए सर. सादर.
जमीन से जुड़ी यादों को छोडकर मुश्किल होता हैं,जब उससे आपका अस्तित्व जुड़ा हो।बेहद भावुक रचना ।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय योगराज सरजी।
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