आदरणीय साथिओ,
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सही इलाज।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय मनन सरजी।
बहुत बहुत आभार आदरणीया बबिता जी।
वाह, बहुत बढ़िया लिखा है आपने, एक नया विषय उठाया है आपने. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
शुक्रिया।
देश प्रेम
सुबह सुबह चाय पीते हुए अमर सिंह अपने एकलौते बेटे राजेश से कहने लगे "बेटा मुझे तुम्हारी माँ के साथ अमेरिका आए क़रीब दो महीने हो गए हैं l अब हम वापस घर हिन्दुस्तान जाना चाहते हैं, हमारा टिकिट बुक करवा दो"
यह सुनते ही राजेश को एक झटका सा लगा, वो फौरन कहने लगा "आप ऎसा क्यूँ बोल रहे हैं, यहाँ क्या परेशानी है"
अमरसिंह फ़िर बोलने लगे," बेटा यहाँ सब आ राम है, तुम्हारे सिवा हमारा कौन है, लेकिन हमें यहाँ अच्छा नहीं लगता, तुम और बहू ऑफिस चले जाते हो, खाली घर में हमारा वक़्त नहीं कटता है"
राजेश फ़िर अपनी बात कहने लगा, "गाँव में बिजली नहीं आती, पानी की परेशानी, कोई अस्पताल नहीं, वहाँ आप लोगों का कौन खयाल रखेगा?"
अमरसिंह चाय का प्याला टेबल पर रखते हुए बोले," वहाँ मेरा घर है, ख़ुद मुखतारी है, प्यार करने वाले लोग हैं जो हमारा ख़याल रखेंगेI"
इतना सुनते ही राजेश की आँखों में आँसू आ गए, वो फ़ौरन माता और पिता जी के पैरों से लिपट कर कहने लगा," आपकी यही मर्ज़ी है तो आज ही मैं टिकिट का रिज़र्वेशन कर वा दूँगा, मगर राजेश की आँखों के आँसू साफ़ साफ़ कह रहे थे कि पुत्र मोह से बड़ा है देश प्रेम l
(मौलिक व अप्रकाशित)
मोहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब आदाब मुबारकबाद बहुत ख़ूबसूरत लघुकथा के लिये क़ुबूल करें जय हिन्द सादर
जनाब आसिफ साहिब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
अच्छी कहानी i सादर
जनाब गोपाल नारायण साहिब, लघुकथा पर शिर्कत के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया I
क्या कहने हैं आ० तस्दीक अहमद खान जीI अपनी मिट्टी का मोह अपनी तरफ खींचता ही हैI प्रदत्त विषय को बहुत ही सुन्दरता से इस लघुकथा के माध्यम से परिभाषित किया गया है, मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें.
मुहतरम जनाब योगराज साहिब, लघुकथा पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आदाब। चिर-परिचित विषय और कथनोपकथन पर विषयांतर्गत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
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