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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 102 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-103

विषय - "संघर्ष"

आयोजन की अवधि- 10 मई 2019, दिन शुक्रवार से 11 मई 2019, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 10 अप्रैल 2019, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदय तल से आभार

आज के विषय संघर्ष को सम्पूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान करता लाजवाब  महाभुजंगप्रयात छंद। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।।

आद0 हरिओम श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। आपका रचना पर अनुमोदन रचना को और पुष्ट करता है। सादर आभार आपका

सुस्वागतम। सरल लगते किंतु कठिन छंद पर इतनी बेहतरीन व.सटीक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। रचना पर आपकी प्रशंशा भरी प्रतिक्रिया का हृदय तल से आभार

I जनाब सुरेंद्र कुमार साहिब, प्रदत्त विषय पर सुन्दर छन्द हुए हैं मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

*संघर्ष*

1

सिला मिल जाएगा तुमको,मगर संघर्ष करना है।
हथेली पे रखो ये जाँ,अगर संघर्ष करना है।।

2

चलो इंसाँ को इंसाँ की नज़र से आज फिर देखें।
नहीं इस दौर में आसाँ ये,पर संघर्ष करना है।।

3

वतन की राह पे लुटकर बहादुर शाह ये कहता था।
सज़ा ए मौत हो जाए जफ़र संघर्ष करना है।।

4

भगत,आज़ाद और अशफ़ाक़ ने हमको सिखाया है।
वफ़ा की राह पे चलना है गर,संघर्ष करना है।।

5

वतन मानिंद ए मादर है,मैं इस पे जान दे दूंगा।
न इसके हाथ हों ज़ख़्मी न सर,संघर्ष करना है।।

6

वफ़ा-ओ-सब्रो शुक्र और मुरव्वत भी रहे क़ायम।
बहुत मुश्किल है ये भी रह-गुज़र संघर्ष करना है।।

7

तेरी मिट्टी में मिल जाऊँ,तेरी ख़ुश्बू में घुल जाऊँ।
मुझे आसिफ इसी पर उम्र-भर संघर्ष करना है।।

मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय आशिफ जैदी साहब विषयानुकूल जबरदस्त रचना पढ़कर मन बहुत खुश हुआ दिली मुबारकबाद कुबूल करें

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी बहुत बहुत शुक्रिया आपकी दुआओं और तव्वजो का मोहतरम।

 

आ. आसिफ जैदी साहब विषयानुकूल शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई .।

आदरणीय Kanak Harlalka जी बहुत बहुत आभार आपकी तवज्जो का सादर ।

आद0 आसिफ़ जैदी जी सादर अभिवादन। बहुत मुश्किल है ये भी रह-गुजर,संघर्ष करना है,, क्या बात कहीं आपने। विषयानुकूल ग़ज़ल पर आपको शैर दर शैर दाद के साथ मुबारक बाद कुबुल फरमाएं

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

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