आदरणीय साथिओ,
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आभार आदरणीय।
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आ मनन कुमार सिंह जी
आदाब। विषय, कथानक विषयांतर्गत बहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई इस नवीन पेशकश के लिए जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। क्षेत्रीय भाषाई संवाद समझने में मुझे परेशानी हो रही है कहीं-कहीं।
आभार आदरणीय उस्मानी जी! क्षेत्र विशेष से संबंधित कथानक के हिसाब से स्वतः ही भाषा चल निकली। वैसे भावगम्यता अर्थ-स्पष्टताकारिणी है,संभवतः।
आदरणीय Manan Kumar singh जी बहुत बहुत बधाई बढ़िया भाषा का प्रदर्शन सादर ।
आभार आदरणीय।
क्षेत्रीय भाषा शैली में आपकी यह लघुकथा मुझे पसंद आई आदरणीय मनन सिंह जी | इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई|
खेस्त्रियाभाषा का प्रयोग कितना किया जा साकता है इस पर गुणी जन ही मार्गदर्शन दे पायेंगे | सादर |
आभार आदरणीया।
बहुत खूब। बढ़िया लघुकथा है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
*अनवर साहब घर में घुसते ही बोले।
"अरे बेटी'(शाहीन) तुम यहीं हो"?
"जी सलीम(दामाद) मुझे लेने नहीं आए' (शाहीन ने कुछ शिकायत भरे अंदाज़ में कहा)
"तो क्या हुआ, 'बेटी' मैं छोड़ आता हूं"।
शाहीन-"जब तक वो नहीं आएंगे मैं नहीं जाऊंगी','आते वक्त भी उन्हें टाइम नहीं था'।
अनवर साहब- "हो सकता है वो वाक़ई मसरूफ़ हो', "तुम इसे अपनी अना का सवाल न बनाओ बेटी,छोटी-छोटी शिकायतों से बड़े हादसे हो जाते हैं'।
शाहीन ने गुस्से में गर्दन को झटका दिया जैसे उसे पापा की बात ठीक न लगी हो।
"देखो बेटी वो घर तुम्हारा है और तुम उसकी रूह', 'अपने घर को कभी बेजान मत छोड़ना',चलो जल्दी तैयार हो जाओ'
"अस्सलाम अलैकुम'! दरवाज़े से सलीम ने सलाम किया और अंदर आकर बैठ गए!
अनवर साहब ने बेटी की तरफ़ देखा जिसकी आंखों में फ़तेह की डबल ख़ुशी थी।
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।रिश्तों में थोड़ी समझदारी दिखाना लाज़मी होता है। शानदार संदेश।
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