आदरणीय साथिओ,
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सामना
"औलाद हो तो... कैसी?" यह ध्वनि वातावरण में बार बार गूंज रही थी।प्रतिध्वनित हो रही थी। लोग इधर उधर देखते। पर आवाज किधर से आती, यह पता न चलता।वह कौन था,क्या कहना चाहता था,यह एक अनसुलझा सवाल बना हुआ था।लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी।
एक बार फिर वही आवाज गूंजी। भीड़ से जवाब मिला,
"राम जैसा,....कृष्ण जैसा।"
"क्यों....?"
"क्योंकि एक ने मर्यादा की स्थापना की।दूसरे ने लीलाधर की भूमिका निभाई।लोक मंगल दोनों की करनी के मूल में था।"
"पर अग्नि परीक्षा के बाद सीता का निर्वासन और द्यूत क्रीड़ा के पश्चात द्रौपदी का केश व वस्त्र - कर्षण क्या जायज़ ठहराए जा सकते हैं?"
"नहीं।"
"तो फिर ...आगे क्या हो? निदान क्या है?"
"......"भीड़ में मौन छा गया।
"औलाद हो तो... कैसी?" वही आवाज एक बार पुनः दिग्दिगंत में गूंजने लगी।लोग किंकर्तव्य विमूढ़ - से एक दूसरे को देख रहे थे।
अचानक भीड़ के एक छोर से आवाज आई,
"औलाद लायक हो.....।"
"मसलन?"वही अदृश्य आवाज पुनः सुनाई पड़ी।
"लायक यानी कर्तव्य निष्ठ हो।भले - बुरे में भेद कर सके।"
"जरा और स्पष्ट करो मेरे भाई लोग।"
"यानी जो काम कर जीविका अर्जन करे।मुफ्तखोरी को मुनाफा नहीं,कोढ़ समझे।"
"और?"
"और क्या?सच समझे और औरों को समझाए भी।"
"मतलब भ्रम से दूर रहे?"
"भटकाव से भी।न भ्रम का साथ दे,न भटकाव का।"
"शाबाश मेरे भाई,शाबाश!तुम लोग ही हमारे आनेवाले कल हो।रोशनी हो,रोब हो।"
"हम समझे नहीं।"भीड़ से आवाज आई।
"यानी भ्रम और भटकाव से मुक्त प्राणी अनवरत अपने गंतव्य की ओर अग्रसर होगा।किसी भी निहित हितवाले का झंडा वह नहीं थामेगा। लोक हित का नारा बुलंद करेगा।"
"जय हो।"भीड़ ने जयकारा लगाया।
"आमीन।" आर्ष वाणी धीरे - धीरे अंतरिक्ष में तिरोहित हो गई।
***
लघुकथा के बारे में दो शब्द: जिंदगी में यदि भ्रम और भटकाव से मुक्ति रहे,तो व्यक्ति अपनी मंजिल हासिल करने की दिशा में अग्रसर होता है।उपलब्धि हासिल भी करता है। परन्तु, आज के माहौल में तरह तरह से लोगों को भटकानेवाले मिल जाते हैं।भटकनेवाले भी मिल जाते हैं।सत्य और असत्य में फ़र्क करने के पहले ही लोग हाथ में किसी का दिया हुए झंडा उठा लेते है।किसी का उछाला हुए नारा वातावरण में उछालने लगते हैं।मारने मारने पर भी उतारू हो जाते हैं।आर्ष वाणी हकीकत परखने और उसपर अमल करने वालों को प्रेरित करती है,उत्साहित करती है।इसीलिए यह लघुकथा मेरी पसंद की है।
"मौौलिक व अप्रकाशित"
आदरनीय मनन कुमार सिंह जी, सबसे पहले तो आयोजन का शुभारम्भ करने हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें. आपकी लघुकथा का विषय और इसके कथानक की ट्रीटमेंट दोनों ही बेहद प्रभावशाली हैं. औलाद कैसी हो, सौ की एक बात आपने कह दी कि - लायक़ हो. लघुकथा मन को छूने वली हुई है, जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई निवेदित है. लघुकथा के बारे में दो शब्द कहने का काम पाठकों पर छोड़ दें, आप स्वयं कोई एक्सप्लेनेशन मत दें.
आदरणीय योगराज जी,प्रोत्साहन देने हेतु बहुत बहुत आभार निवेदित करता हूं। हां, दो शब्द किसी अन्य मकसद से लघुकथा के साथ जुड़े थे,जो लघुकथा के यहां पोस्ट होने के समय ध्यान में नहीं आए।आग्रह है कि इस मंच के हेतु उन्हें ग्रहण न किया जाय,सादर।
बहुत बढ़िया बात कही है आपने आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। हार्दिक बधाई इस लघुकथा के लिये।
आपका आभार आदरणीया कल्पना जी।
हमेशा की तरह एक उत्तम साहित्यिक रचना।
आपका आभार आदरणीय अजय जी।
भ्रम और भटकाव से मुक्त प्राणी ही अनवरत अपने गंतव्य की ओर अग्रसर होगा का संदेश देती बेहतरीन का लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई.
लघुकथा के कथन को उद्धृत करते हुए अपने उद्गार व्यक्ति करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी।
आ. भाई मनन जी, बहुत सारगर्भित कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण जी।
जनमानस मे आज भटकाव अधिक है क्यों कि डिजिटल क्रान्ति का समय है।जितनी अधिक जानकारी उतना अधिक भटकाव। आज के माहौल से प्रेरित एक शानदार रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
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