आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय भाई योगराज प्रभाकर जी।
कच्चे बालमन पर बड़ों की बातें बहुत गहरे बैठ जाती हैं।बच्चे देश का भविष्य होते हैं। प्रदत्त विषय पर शानदार रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।
पिता के नक्शेकदम पर पुत्र, बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आ तेज वीर सिंह साहब
हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार सिंह जी।
सच का आईना दिखाती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय तेजवीर सरजी।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आपने संवाद शैली में बहुत ही सुंदर, सारगर्भित और प्ररेक लघुकथा कही है।
हार्दिक आभार आदरणीय भाई ओम प्रकाश सिंह जी।
आदरणीय उसमनी जी,आपका आभार! औलाद,जनमानस व भविष्य का मेल आपने अच्छे ढंग से प्रतिपादित किया है।ये तीनों वस्तुतः एक दूसरे से परस्पर आबद्ध हैं।
ये टिप्पणी अन्य थ्रेड में पोस्ट हो गई है आ. मनन जी।
'पंचस्तम्भी परिक्रमा' (लघुकथा) :
शीतलहर की एक शाम चौपाटी पर गरमा-गरम मोमोज़ का स्वाद लेते हुए कुछ युवा ताज़ा गरमा-गरम समाचारों के भी मज़े ले रहे थे।
"लो अब अयोध्या मेेंं उनके लिए भी पंचकोसी परिक्रमा के बाहर ज़मीनें तय हो गईं! उनमें से कोई भी ले लें और बना लें, जो बनाना हो!" एक तिलकधारी युवा ने कहा।
"फ़ैसला तो हमारे प्रमुखों को करना चाहिए कि कौन सी ज़मीन लेना है और उसके भी पंचकोस घेरे तक दख़ल वाली कोई बात होनी चाहिए या नहीं!" एक टोपीधारी ने उसी अंदाज़ व तेवर में कहा, "पहले ज़मीन की खुदाई कराकर पुष्टि कर लें कि कुछ और तो नहीं दबा है वहां भी!"
मोमोज़ के ठेलेवाले ने कहा, "भाईसाहब, छोड़ो वैसी बातें! अपन सब लोग बहुत पढ़े- लिखे हैं। लोकतंत्र वाले देश की जवाँ औलाद हैं। क्यों न हम 'जनता' समेत इसके चारों-पाँचों स्तम्भों की परिक्रमा कर संविधान मुताबिक़ चलें!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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