साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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आ० नादिर जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिए बधाई स्वीकार करें
जनाब नादिर खान साहब उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली दाद और मुबारकबाद कबूल कीजिये|
मुहतरम नादिर खान जी, आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी मुझे, बधाई स्वीकार करें।
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय नादिर खान जी | हार्दिक बधाई|
जाम ऐसा पिला गया है मुझे
चाँद सा जग मगा गया है मुझे
इश्क़ में ऐसे टूटता है दिल
गिर के शीशा बता गया है मुझे
हिज्र के ग़म का काफला आकर
आज फिर से रुला गया है मुझे
मैं,तो बिखरा हुअा पड़ा था यहाँ
कोई आकर जमा गया है मुझे
लाश को दफ़्न कैसे करते हैं
इक परिन्दा सिखा गया है मुझे
जब्र के देखना हैं अब तेवर
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"
अपने पैरों पे कामयाबी से
कोई चलना सिखा गया है मुझे
एक सुरख़ाब नाम का शाइर
जाने क्या क्या सिखा गया है मुझे
मौलिक अप्रकाशित रचना
जनाब सुरख़ाब बशर साहिब आदाब,ओबीओ परिवार में आपका स्वागत है ।
तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'लाश को दफ़्न कैसे करते'
इस मिसरे में एक शब्द 'हैं' लिखने से रह गया है ।
मोहतरम समर कबीर साहब होसला अफ्ज़ाई का बहुत शुक्रिया
बहुत बढ़िया गिरही शे'अर के साथ बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब सुर्ख़ब बशर साहिब।
जनाब शेख़ शेहज़ाद उस्मानी साहब सुख़न नवाज़ी का बेह़द शुक्रिया
जनाब सुरख़ाब बशर साहिब आदाब
उम्दा अशआर से सजी बहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब मिर्ज़ा जावेद बेग साहब
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