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बहुत उम्दा गजल हुई है आदरणीय,बधाई।हाँ,गिरह में ......आप सब को 'समर' बता देना', क्या द्योतित करता है?शायद .......बता देगा/बता देंगे। ..हो।
आ. अफ़रोज़ जी,
इस ग़ज़ल और इस शेर
ढूंढता फिर रहा हूँ सदियों से!
कोई मुझमें छुपा गया है मुझे
के लिए बहुत बहुत बहुत बधाईयाँ
जनाब निलेश नूर साहिब,
आदाब,
ग़जल को आपकी मुहब्बतें मिलीं,
तहे दिल से आपका मश्कूर हूँ,
अश्क पीता हूँ मुस्कुरा कर मैं!
ये सलीक़ा भी आ गया है मुझे!!
उसका मश्कूर हूँ तहे दिल से!
आईना जो दिखा गया है मुझे!!
क्या बात है जनाब अफ़रोज साहब कमाल के अशआर हुये है बहुत बहुत मुबारकबाद ........
जनाब नादिर खान साहिब,
ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवज़ी का शुक्रिया,,,
आदरणीय अफ़रोज़ सहर जी आदाब,
दूसरी पेशकश के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
जनाब मो. आरिफ़ साहिब,
सुख़न नवज़ी का शुक्रिया,
वाह अफरोज सहर साहिब बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर मुबारकवाद हाजिर है।
जनाब वासू देव अग्रवाल साहिब,
सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,
जनाब अफ़रोज़ साहिब आदाब,नज़र अंदाज़ कर दिया ।
अच्छी ग़ज़ल हुई,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मुहतरम समर साहिब आदाब,
हौसला अफ़्ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया,,
आद० अफरोज़ साहब ये ग़ज़ल भी बहुत उम्दा हुई हर शेर शानदार है दिल से दाद हाज़िर है
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