परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 113वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब फरहत एहसास साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"मुझे अब चारों जानिब से पुकारा जा रहा है"
1222 1222 1222 122
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन फ़ऊलुन
(बह्र: हजज़ मुसम्मन महजूफ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय मनन कुमार जी ,अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें
बहुत बहुत आभार आदरणीया।
जनाब मनन साहिब, गज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने मुबारक बाद कुबूल फरमाएं ।शेर _2 के सानी को यूँ कर सकते हैं
"जहां में वहम एसा भी पसारा जा रहा है"
आभार आदरणीय तसदीक जी।वैसे तो वहम अब भाषा में रच बस गया है,पर इस शब्द के मूल रूप पर कायम रहने का भी अपना चलन है।अतः,मैंने शेर ही बदल डाला है;भाव प्रकट होने से अभिप्राय होना चाहिए।
Manan kumar singh ji ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बाकी सर की बातों का संज्ञान लें
शुक्रिया।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी गजल कहने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां अच्छी ग़ज़ल हुई बाकी गुनी जनों की बात पर ध्यान दें।
आभार आपका आदरणीय।
आ. भाई मनन कुमार जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
कभी जो चांद को भी दाग़वाला कह रहा था
खुदी में डूबता खुद वह सितारा जा रहा है। ...बहुत ख़ूब!
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मनन कुमार सिंह जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बहुत बहुत आभार आदरणीय।
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