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आचार्य जी , आज के हालात पर चोट करते हुए बहुत ही उम्द्दा शेर हैं सभी, कुछ शेर तो बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं .....
देश के धन को विदेशों में छिपाना है कला.
ये कलाकारी भी अब सीखी-सिखाई जाए..
चोर-आतंकियों का, कीजिये सत्कार 'सलिल'.
लाठियाँ पुलिस की, संतों पे चलाई जाए..
एक शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति है , बहुत बहुत बधाई |
//आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए.
रिश्वतों की है रकम, मिलके पचाई जाए..
देश के धन को विदेशों में छिपाना है कला.
ये कलाकारी भी अब सीखी-सिखाई जाए..//
आदरणीय आचार्य जी ! आपकी यह सटीक व्यंग्य गज़ल आज की वस्तु स्थिति को स्पष्ट रूप से बयां कर रही है ! इस हेतु कृपया हृदय से बधाई स्वीकारें ..........सादर........
बंदे मातरम बंधुओं,
आज बहुत दिन बाद आप सब के सामने हूँ ..... गजल लिखने की कला मैं कभी नही सीख पाया ....यदा कदा प्रयास जरूर करता हूँ ......... मेरी गलतियों पर ध्यान जरूर दिलाईयेगा.
सादर
मर्ग ही जहां पर, फर्द फर्द है,
उस वहशत में चिरागां तो जलाई जाए....
जहर आलूदा साँसों को जो जीवन दे दे,
फिर चमन में वही बयार चलाई जाए.........
जहर नफरत का दिलो में जो बसा है यारों,
मिलो, की मिल के करी उसकी सफाई जाए........
मीलों गहरी हुई जो नफरत से,
है वक्त वो दरार अब मिटाई जाए .........
जहालत ओ जलालत ने किया सब शमशाँ ,
अमन ओ ज्ञान की गंगा तो भाई जाए .....
काश आये जो हर माह ईद और दीवाली,
जा दोस्तों के घर खीर तो खाई जाये .........
जो दे चार सू खुशियाँ, वो सौगात तो लाइ जाए.
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,.........
अच्छी अभिव्यक्ति राकेश जी को बधाई।ग़ज़ल एक छंद बद्ध पद्यातमक विधा है अत: छंद ग्यान
किसी उस्ताद से सीखी जा सकती है बाक़ी कथ्य तो जो आप कह रहे हैं उसे ही उन छंदों में बांधना है,
थोड़ी कोशिश और मजबूत जज़्बे की ज़रूरत है।
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