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नमस्कार.
सही कहा आचार्य सलिलजी आपने. हमारे यहाँ भी धान की लाई को खील ही कहते हैं.
बहुत बहुत धन्यवाद प्रभाकर जी।
* " हुस्न "की जगह लहर , योगराज जी "हुस्न" हीतो यहां लहरों की प्रतिबिम्ब है।
* " चराग़ों की ज़मानत" अगर लिये हैं तो झगड़ा " हवाओं की अदालत से ही
रहेगा" सर जी।"
//जब किनारों पे सितम ढा रही है हुस्न, तो फिर
छोड़ मझधार, वहीं कश्ती डुबाई जाये।//
प्रभु जी, .........ढा "रही" है हुस्न है की जानिब इशारा किया था इस नाचीज़ ने ! मेरी जानकारी के मुताबिक "हुस्न" पुल्लिंग की तरह से इस्तेमाल किया जाता है जबकि यहाँ इस मिसरे में इसको स्त्रीलिंग की तरह लिया गया है ! सादर !
आप बजा फ़रमा रहे हैं योगराज जी " हुस्न " शब्द पुल्लिंग के रूप में ही लिया जाता है,पर मैंने यहां
एक औरत की ख़ूबसूरती के " बिम्ब" के रूप में प्रयोग किया है "हुस्न" को ।,पता नहीं ये कबूल होता है या ख़ारिज़ । 'मेरे पास दूसरा अलटेर्नेटिव भी था कि " सितम ढा रही" को "सितम ढा रहा है" करके बाक़ी शब्दों को यथावत रखने का ,पर मेरा दिल "ख़ुद " "male" होने के कारण उसे स्वीकार नहीं कर सका। बहरहाल i interaction के लिये धन्यवाद आपकी टिप्पणियों के इन्तज़ार में आपका संजय दानी।
सचमुच कमाल का शेर है यह !! वाह |
धन्यवाद राना प्रतापजी, लिखते वक़्त मैं भी इसी शे'र पर अटका था
कि इसका क्या मतलब है फिर दिल ने कहा इसे यूं ही रहने दो कम से
कम शे"र नाज़ुक तो है समालोचक गण शायद इसमें कोई "बात" ढूंढ लें।
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