आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आज दिन भर के काम की थकान थी आदरणीय शेख साहब, जो आपका यह कमेंट पढ़कर एकदम से गायब हो गयी| चेहरे पर स्वतः ही मुस्कान लाने वाली टिप्पणी हेतु बहुत शुक्रिया| गोष्ठी का विषय तो आदरणीय गुरूजी ही निश्चित कर सकते हैं और उनके इस निर्णय में कुछ कहने की मेरी हैसियत नहीं है| वो बहुत सारे पैरामीटर सोच कर ही विषय निर्धारित करते हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि हम इन विषयों पर काम अवश्य ही करें| क्या पता वह रचनाएँ अगली गोष्ठी में काम आ जाएँ| सादर,
"ये केवल तभी बुरा नहीं देखेंगे, बुरा नहीं कहेंगे और बुरा नहीं सुनेगे जब इनकी जेबें भरी रहेंगी| इंसान हैं बंदर नहीं..."
बेहतरीन कटाक्ष मित्र द्वारा जो इस लघु कथा को ऊँचाई पर ले जाता है सच में आज जेब महत्वपूर्ण हो गई है उसके बिना कोई किसी को नहीं पूछता |इस शानदार लघु कथा के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० चंद्रेश कुमार जी .
लघुकथा के इस प्रयास के मर्म तक पहुँच कर इसे पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी|
आ.चन्द्रेश जी वाह क्या प्रतिकात्मक सोच रखते है आप.सादर बधाई व नमन आपकी रचना को
'अच्छाई और बुराई की परख' - पूर्वज बंदरों को ‘इस अदरक’ का स्वाद कहाँ मालूम था?"
"ओह! लेकिन तस्वीर में इन इंसानों की जेब कहाँ है?" मित्र की आवाज़ में आत्मविश्वास था|--
गजब की पंक्तिया
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा, और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु सादर आभार आदरणीया नयना (आरती) कानिटकर जी |
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु सादर आभार आदरणीया काँता रॉय जी|
जनाब चंद्रेश कुमार साहिब , दिल को छू लेने वाली, सन्देश देती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
लघुकथा के इस प्रयास को पसंद कर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला-अफज़ाई करने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया जनाब तस्दीक़ अहमद खान साहब|
आज के इंसान की विल्कुल सही तस्वीर बनाकर उसके जेब में रखने का कमाल , भाई वाह, आदरणीय चंद्रेश जी !
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी आशीर्वादस्वरूप टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु सादर आभार आदरणीय त्रैलोक्य रंजन शुक्ल जी सर
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