आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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प्रदत्त विषय को सार्थक करती रचना , बधाई स्वीकार करें आदरणीय चौथमल जी
मार्मिक लघुकथा लिखी है अपने आदरणीय चौथमल जी | सच में लोग तमाशबीन ही बने रहते है | बधाई स्वीकारें आदरणीय इस रचना के लिए |
प्रथम लघुकथा हेतु सादर बधाई प्रेषित है आदरणीय चौथमल जी जैन, हालाँकि लेखन से कहीं नहीं लग रहा कि प्रथम लघुकथा है| सविनय, उम्मीद करता हूँ कि आपकी और लघुकथाएं भी समय-समय पर हमें लाभान्वित करती रहेंगी| सादर,
बढ़िया लानत भेजी है आपने आदरणीय ।बधाई ।
तमाशबीन
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शाम होते ही समाचार बुलेटिन के समय सरदार जी अपने बचपन के दोस्त पंडित जी के घर पहुँच गएI क्योंकि पूरे गाँव में एक ही टीवी था इसलिए अन्य लोग भी दूरदर्शन पर समाचार देखने के लिए अक्सर पंडित जी के घर आ जाया करते थेI
दरअसल, प्रदेश की अमन-शांति को न जाने किसकी नज़र लग गई थीI देखते ही देखते आतंकवाद की आग पूरे प्रदेश में फैल गई थीI दिन दिहाड़े निर्दोष और मासूम लोगों की हत्याएँ रोज़ की बात हो गई थीI कभी भरे बाज़ार में अंधाधुंध गोलिआं बरसा दी जातीं तो कभी बसों से उतार कर लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाताI कभी कहीं बम धमाका कर दिया जाता तो कभी किसी धर्म स्थान में पशु का सिर गिरा दिए जाने की घटना हो जातीI अब तो पुलिस द्वारा निर्दोष युवकों को आतंकवादी बता कर नकली मुठभेड़ में मार देने की घटनाएँ भी सामने आने लगी थींI दोनों समुदायों में यद्यपि आपसी सौहार्द यथावत कायम था, किन्तु हालत से भयभीत अल्पसंख्यक समुदाय का प्रदेश से पलायन भी प्रारंभ हो चुका थाI कई बरस बीत जाने के बाद भी यह सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा थाI पूरे समाचार बुलेटिन मैं ऐसे समाचारों का ही बोलबाला रहताI
आधे घंटे का समाचार बुलेटिन शुरू हुआ, सभी लोग सांस रोक कर टीवी सेट पर नज़र गड़ाए हुए बैठे थेI आधा समय गुजर जाने के बाद भी प्रदेश से हत्या या हिंसा की कोई खबर नहीं थी, अचानक अपने प्रदेश का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव गई बुना बढ़ गएI समाचार वाचक ने बताया कि प्रदेश में किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है जिसे सुनकर दोनों के माथे पर अविश्वास की रेखाएं उभर आईंI फिर खेल समाचार के बाद मौसम का हाल बताया गया और समाचार बुलेटिन समाप्त हो गयाI सरदार जी ने पंडित जी की तरफ देखा और ढीले से स्वर में बोले:
“चलो अच्छा है आज कोई बुरी खबर सुनने को नहीं मिलीI”
“सही कहा, अमन-चैन ही रहे तो अच्छा हैI” टीवी बंद करते हुए बुझे से स्वर में पंडित जी कहाI
दोनों खामोशी से उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़े, और फिर अचानक एक स्वर में बोल उठे:
“अमन चैन तो ठीक है, मगर समाचार का मज़ा नहीं आया आजI”
(मौलिक और अप्रकाशित)
रचनाकाल 1988
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,बहुत गहरा चिंतन है इस लघुकथा में,क्या तारीफ़ करूँ,यूँ समझ लीजिये प्रदत्त विषय से पूरा इंसाफ़ किया गया है, अब अगर टी.वी.पर ऐसी घटनाएं नहीं दिखाई जाएँ तो लोगों को मज़ा नहीं आता,लोग जैसे इन चीज़ों के आदी हो गए हैं । बहुत कुछ सीखा आपकी इस लघुकथा से ।दिल की गहराइयों से ढेरों बधाई स्वीकार करें जनाब ।
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