परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 130वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब इब्न-ए-इंशा
साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए "
22 22 22 22 22 22 22 2
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय सलिक जी उम्दा गज़ल हुयी बधाई स्वीकारें ...सभी शेर लाजवाब हैं
22 22 22 22 22 22 22 2
इश्क़ का चर्चा काम न आया मुफ़्त में हम बदनाम हुए
इश्क़ किया पर चैन न पाया हम तो बस नाकाम हुए।1
सुब्ह की खिलती लाली जैसे चेहरा अपना रहता था
जाने नज़र ये किसकी लगी है हम बुझती सी शाम हुए।2
दिल से यारों हाथ धो बैठे अक़्ल न देती साथ कभी
"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए"3
लोग वबा की बात हैं करते सुनते हम भी रहते हैं
हाल हुआ बेहाल जो देखा, हम भी बेआराम हुए।4
किसकी जिम्मेदारी होगी कौन सजा अब पाएगा
आज वबा के चलते परेशाँ सारे ख़ास-ओ-आम हुए।5
दुनिया की इस भीड़ में अक्सर मिलते रहते लोग नए
और कभी कुछ जाने माने लोग भी तो गुमनाम हुए।6
साथ में मिल रमजान मनाया याद ख़ुदा को करके "रिया"
नवरात्रों में माँ को पूजा, नवमी के दिन राम हुए।7
"मौलिक व अप्रकाशित"
आ. रिचा जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
/जाने नज़र ये किसकी लगी है हम बुझती सी शाम हुए/ को--/जाने किसकी नज़र लगी जो अब हम बुझती शाम हुए। करें तो गेयता बढ़ जायेगी। सादर..
आदरणीय लक्ष्मण जी,अभिवादन
जी धन्यवाद आपका।
बेहतर है, ठीक करती हूँ इसे।
सादर।
22 22 22 22 22 22 22 2
इश्क़ का चर्चा काम न आया मुफ़्त में हम बदनाम हुए
इश्क़ किया पर चैन न पाया हम तो बस नाकाम हुए।1
सुब्ह की खिलती लाली जैसे चेहरा अपना रहता था
जाने किसकी नज़र लगी जो अब हम बुझती शाम हुए।2
दिल से यारों हाथ धो बैठे अक़्ल न देती साथ कभी
"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए"3
लोग वबा की बात हैं करते सुनते हम भी रहते हैं
हाल हुआ बेहाल जो देखा, हम भी बेआराम हुए।4
किसकी जिम्मेदारी होगी कौन सजा अब पाएगा
आज वबा के चलते परेशाँ सारे ख़ास-ओ-आम हुए।5
दुनिया की इस भीड़ में अक्सर मिलते रहते लोग नए
और कभी कुछ जाने माने लोग भी तो गुमनाम हुए।6
साथ में मिल रमजान मनाया याद ख़ुदा को करके "रिया"
नवरात्रों में माँ को पूजा, नवमी के दिन राम हुए।7
आ. रिचा जी नमस्कार,बहुत ही उम्दः ग़ज़ल हुई है, बहुत बधाई आपको
आदरणीय निलेश जी
बहुत शुक्रिया आपका।
सादर।
नमस्कार, आदरेया, मात्रिक गठन की दृष्टि से उल्लेखनीय ग़ज़ल है, आप की ! बाक़ी प्रवाह को लेकर आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफ़िर की बात सही है! इति!
आदरणीय चेतन जी, नमस्कार
बहुत बहुत आभार आपका,जी सुधर किया है।।
सादर।।
सादर प्रणाम रिचा जी
चेहरा/212 को चहरा/ 22 कर लीजिएगा
बेहतरीन प्रयास के अच्छी ग़ज़ल है
बाकी तो धामी सर ने बता ही दिया
सादर
आदरणीय Aazi जी,नमस्कार
बहुत शुक्रिया आपका।
जी ठीक, करेक्शन के लिए भी आभार आपका।
सादर।
आदरणीय आज़ी जी
चेहरा 22 ही लिया है।
सादर।
जी आदरणीय रिचा जी
आभार
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |