आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ तैंतालिसवाँ आयोजन है.
पुनः इस बार का छंद है - कुकुभ छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
18 मार्च 2023 दिन शनिवार से
19 मार्च 2023 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
18 मार्च 2023 दिन शनिवार से 19 मार्च 2023 दिन रविवार तक रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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सादर
आदरणीय अजय भाईजी
चित्र के अनुरूप सुंदर चार चौकों के लिए हार्दिक बधाई।
जहाँ लय बाधित है कुछ ही प्रयास से दूर किया जा सकता है।
जिसे उगाना नया तुंग भी ....... आप जो कहना चाहते हैं स्पष्ट नहीं हो पाया।
तक / हठ की तुकांतता ?
धन्यवाद अखिलेश भाई। आपके द्वारा इंगित बिंदुओं पर शीघ्र ही कार्य करूँगा
आदरणीय अजय गुप्ता ’अजेय’ जी,
आपकी प्रस्तुति प्रभावी बन पड़ी है. यह अवश्य है कि वाक्य/ पद संयोजन तनिक और प्रयास की अपेक्षा करते हैं. यथा,
जिसके घट में प्यास बादलों, पास पहुँचने तक की है, ... इस वाक्य/ पद का संय़ोजन और सहज हो सकता है. कारक के या अव्यय तक की कमी अवश्य प्रतीत हो रही है. तो कई स्थानों पर शब्द संयोजन भी असहज है. यथा, रहेगी युग-युग प्रतिष्ठा ... रहेगी में ’रहे’ त्रिकल शब्द होने से ’गी’ के बाद कोई ऐसा शब्द आना चाहिए था, जो न केवल त्रिकल हो बल्कि उसकी कुल मात्रा भी १ २ हो.
कुकुभ छंद का यथोचित निर्वहन श्लाघनीय है.
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई तथा अशेष शुभकामनाएँ
रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा सदा प्रेरक का काम करते हैं। पुनः आभार
हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.
आदरणीय चेतन जी,
आपने प्रदत्त चित्र में मानव पर आए संकट और उससे बचने के लिए अध्यात्म, प्रार्थना और धर्म का मार्ग अपनाने का संदेश दिया है। एक नया परिदृश्य छंदों के माध्यम से उभर आया है। पढ़कर अच्छा लगा।
मुसीबत, मानव, आसव, निस्बत इत्यादि से चरणांत कदाचित नियम भंग है। क्योंकि इसका अंत दो गुरु से होना चाहिए। यदि मेरी त्रुटि है तो अग्रिम क्षमा प्रार्थना करता हूँ। अन्य पाठकों व समीक्षकों के मत की प्रतीक्षा रहेगी ।
आदरणीय अजय जी, आपकी टिप्पणी के आलोक मे मैंने संशोधित प्रस्तुति दी है, कृपया पुन: अवलोकन करें !
कुकुभ छंद
आदरणीय प्रतिभा जी, कुकुभ छंद में प्रदत्त चित्र पर उत्तम रचना हुई है। कॉर्पोरेट नौकरियों में टारगेट का बोझ लिए युवाओं के जीवन में इस मानसिक अशान्ति और तनाव से उत्पन्न समस्याओं को अच्छे से चिन्हित किया आपने। साथ ही जीवनशैली को सुविधाजनक बनाने के फेर में सुविधा से ही वंचित होता मानव। दोनों छंद बहुत पसंद आए।
एक छंद और लिखिए इसपर कि कैसे अपनों के साथ समय बिताना और संयमित जीवन ही मानसिक सुख का आधार हो सकता है। उसको आपके शब्दों में पढ़ने की जिज्ञासा रहेगी । धन्यवाद
आपको छंद अच्छे लगे,हार्दिक आभार आदरणीय अजय जी।आपके सुझाये भावों को लेकर भी नियत समय में छंद प्रयास की कोशिश रहेगी।
निश्चय ही वो पठनीय और संग्रहणीय होंगें।
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