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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 154 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'ख़ुमार' बाराबंकी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'क़िस्तों में ख़ुद कुशी का मज़ा हमसे पूछिए'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --का मज़ा हमसे पूछिए

क़ाफ़िया:-(ई स्वर) ज़िन्दगी,आशिक़ी, सादगी,रौशनी,बेकली,मयकशी आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी |

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 अप्रैल दिन गुरुवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अप्रैल दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जी आदाब, ग़ज़ल तक आने और हौसला अफ़जाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया मोहतरम

आदरणीया अंजुमन जी, सादर नमस्कार। तरही मिसरे पर ख़ूबसूरत अशआर से सजी अच्छी ग़ज़ल कही आपने। हार्दिक बधाई आपको।

आदरणीया अंजुमन  जी, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है, शेर-दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये. सादर 


221 2121 1221 212

कश्ती की बेबसी का मज़ा हमसे पूछिए
तूफाँ से  दोस्ती  का  मज़ा  हमसे पूछिए।१।
*
नगरों का रौब त्याग के जिस दिन भी आ सको
जंगल  की  ताजगी  का  मज़ा   हमसे   पूछिए।२।
*
पाये पता न कोई  भी  साँसें रुकें अगर
ऐसी ही बे-ख़ुदी का मज़ा हमसे पूछिए।३।
*
करते हैं रोज मौज  में  आँखों से गुफ़्तगू
भरे भौन ख़ामुशी का मज़ा हमसे पूछिए।४।
*
बंधन में बँध के एक हो पाओ जो आप फिर
आजाद  जिन्दगी  का  मज़ा  हम से  पूछिये।५।
*
जुल्फें झटक के बूँदें जो होठों पे आ रहीं
पावस में तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिये।६।
*
आये जो  याद  बचपना  तुम  को बुढ़ापे में
बचपन की बतकही का मज़ा हमसे पूछिए।७।
*
जब से मिलाया हाथ जला एक घर नहीं
दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए।८।
*
भटके कहीं तो आप 'मुसाफिर' को पथ दिखा
घर  फूँक  रौशनी   का   मज़ा   हमसे  पूछिए।९।

*
गिरह-
हम तो जवान देश के रहते कफन पहन
क़िस्तों में ख़ुद कुशी का मज़ा हमसे पूछिए।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीयय लक्ष्मण जी उम्दा गजल कही है आपने आज के तरही मिसरे पर । इस गजल के लिये शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करें ।

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

आदरणीयय लक्ष्मण मुसाफिरजी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल की दिली मुबारकबाद, दूसरे शे'र पर नज़रे सानी कीजिएगा, ऊला में 'सको' और सानी में "पूछिए" सादर

आ. अंजुमन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति उत्साहवर्धन और सलाह के लिए धन्यवाद। दूसरे शेर में सको की जगह "सकें " पढ़ें। 

सादर..

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

मुह्तारमा अंजुमन जी की बात पर विचार करें I 

भरे भौन ख़ामुशी का मज़ा हमसे पूछिए'--- इसा म्मिसरे की बह्र देखें I 

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

"भरे भौन" में ध्वनि के हिसाब से "भरे" में मात्रा गिराकर १+१=२ की गयी है। यदि यह अनुचित है तो बदलने का प्रयास करता हूँ । सादर....

//भरे" में मात्रा गिराकर १+१=२ की गयी है। यदि यह अनुचित है तो बदलने का प्रयास//

ये उचित नहीं है,बदलने का प्रयास करें ।

जी ठीक है..

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