आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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//अरे यह पार्क के गेट पर भीड़ कैसी,सुबह-सुबह घूमने वाले उसके सभी साथी गेट के बाहर चहल कदमी करते हुए एक दूसरे से चर्चा करने में मशगूल, //
यदि यह संवाद है तो इसको इनवरटड कौमा में डालें, यदि यह विवरण है तो इसको दुबारा देखें आ० प्रदीप जैन जीI वैसे पार्क में घूमने (ताज़ी हवा खाने) पर सर्विस टैक्स की बात अटपटी नै लगती क्या? बहरहाल लघुकथा अच्छी है, विषय नया है बधाई प्रेषित हैI
धन्यवाद आदरणीय ,माकूल सलाह देने एवं कथा की तारीफ हेतु ।बात कुछ अटपटी है ,इसलिए तो स्वप्न में कही गई आदरणीय।
वाह्ह्हह्ह, सपने में ही सही टैक्स का विरोध तो किया.आक्रोश का सुन्दर चित्रण ,
बहुत सार्थक और सुन्दर सृज़न,
कथा की सराहना हेतु आभारी हूँ, आदरणीय महिमा जी।
धन्यवाद आदरणीय शहजाद जी कथा की मुखर प्रशंसा हेतु। संदर्भित वाक्य संयुक्त वाक्य है एवं अंत में लगा चिन्ह सही है शहजाद जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय पवन जैन जी!अच्छी लघुकथा!
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी ,उत्साह वर्धन हेतु।
धन्यवाद आदरणीय नीता कसार जी कथा की सराहना हेतु ।
प्रक्रति द्वारा प्रदत्त उपहार पर सरकार द्वारा टैक्स लगाने पर स्वपन में आक्रोश फूट पडा और हाथ चल पडा | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई श्री पवन जैन साह्ब
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ।
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