आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मोहतरमा नैना आरती साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती हुई सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
.तस्दिक जी तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय ताई, दिए गए विषय 'पश्चाताप' को पूरी तरह सार्थक करती इस कथा हेतु मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं । जहां तक कथा के आकार का सबंध है तो मेरा मानना है कि लघुकथा में उद्देश्य की स्पष्टता और पूर्णता अधिक महत्वपूर्ण है ना कि उसका आकार। किसी भी रचना का आकार-प्रकार उसके विषय पर और निर्वाहण पर निर्भर करता है। कथानक का विस्तार या संकुचन उसके कथ्य के सापेक्ष होता है। वैसे भी लघुकथा की पहचान शब्द संख्या की अपेक्षा उसके कथ्य की वेधक क्षमता पर निर्भर करती है। सो आकार को लेकर आपको कुछ डरने की बात नहीं है। /
" मेरी बात सुनो अम्मा मैं भी हर बार दीदी के यहाँ से सिर्फ़ चाय पीकर और उसकी सासू माँ से जलिल होकर ही घर आता हूँ आपके इस स्वभाव की वजह से। आपको दू:ख ना हो इसलिए कभी बताता नहीं।" पापा की आवाज जरा तेज थी।
बस इतना सुनते ही दादी का चिल्लाना अचानक थम गया था। / लघुकथा की इन पंक्ितयों ने मन मोह लिया। एक बार फिर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
आ.रवि दादा (दादा-छोटा भाई) आपकी सकारात्मक टिप्पणी से मेरे मन पे आए बोझ को एकदम हल्का कर दिया. मेरे प्रयास पर आपके विस्तृत कहन ने मेरा उत्साह्वर्धन किया है आभार आपका.
आ.बस एक भूल जो अधिकतर होने की संभावना दिखी इसलिए कि विषय 'पश्चाताप' नही "प्रायश्चित"है. मैने इन दो शब्दो जो फ़र्क महसूस किया वो यह कि 'पश्चाताप' मतलब गलत काम पर केवल खेद प्रकट करना और "प्रायश्चित" मतलब गलत काम का परिहार भी करना. क्या मै सही हूँ. सादर
बिल्कुल सही कहा आपने। मैं गल्ती से 'पश्चाताप' लिख गया । सादर
आदरणीय रवि प्रभाकर जी सृजनकर्ता के मन में कथा के आकार को लेकर दी गयी विभिन्न टिप्पणियों के भय को आपने जिस सहृदयता से दूर किया है , काबिले तारीफ़ है। सृजनकर्ता जहां भविष्य में सजग रहेगा वहीं भयमुक्त होने से उसका सृजन ओर भी निखरेगा। मेरे विचार में यही इस कार्यशाला का उद्देश्य भी है। कृपया मेरी किसी बात को आप अन्यथा न लेवें। आपका हार्दिक आभार।
आ.समर कबीर जी बहूत-बहूत शुक्रिया.
आ० नयना कानिटकर जी
संकीर्ण पारिवारिक परिपाटी को बदल दादी ने बहुत अच्छा प्रायश्चित किया.. विषय की परिधि में कथानक बहुत पसंद आया, जिस पर बहुत बहुत बधाई, लेकिन पात्र और पात्रों के साथ साथ बहुत सारी संज्ञाएँ होने के कारण कहानी का पहला अंश थोड़ा उलझा सा लगा जिसे दो बार पढने पर ही कथानक स्पष्ट हुआ.. इसे सरलीकृत करने की गुंजाइश महसूस हुई. बाकी जानकार अपनी राय देंगे
सुन्दर कथानक हेतु पुनः बधाई स्वीकारें
सस्नेह
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