आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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गुनहगार
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दोनों ने परिवार की मर्जी के खिलाफ विजातीय शादी की थी। उन्होंने अपने बलबूते पर एक आशिया बनाया, जिसके गुलशन में एक फूल भी खिल गया था। वह परी मुझे मौसी-मौसी कहती मेरे दिल के करीब थी। आज उनकी तेरहवीं के दिन दोनों के परिवारों से रिश्तेदार आये।उन्हें अपने जवान जहीन बच्चों की एक्सीडेंट में मौत के दुख से ज्यादा उनकी कमाई दौलत को बटोरने की जुगत में लगे देखा। उस बच्ची की तरफ किसी का ध्यान नहीं,जो बेसहारा सी मेरे पास सिमटी बैठी रही।सब कुछ बंट जाने के बाद मैने परी के दादा से पूँछा -
"इसे मैं ले जाऊं अपने साथ ?" 
" हाँ ले जाइये, आपके करीब भी है।" 
"परी मेरे साथ चलोगी ? "
"मम्मा नहीं आयेगी क्या अब ? "
समेट लिया उसे और भींच लिया सीने से," मैं हूँ न ,अब मैं ही तुम्हारी मम्मा हूँ मै ही पापा।"
अपने घर लाकर, "मम्मी मैं परी को ले आई हूँ,यह मेरे साथ रहेगी, अब नहीं करनी मुझे शादी न संजोने कोई सपने।अब यही मेरी सब कुछ है और मैं इसकी।"
मैंने ही दोनों को मिलाया था जिससे हो गए थे अपने- अपने परिवारों से दूर और अब बच गई यह अकेली।
मेरे गुनाह की सजा इसे ? कभी नहीं ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत मार्मिक लघु कथा नायिका का उस बच्ची को अपनाकर खुद शादी न करने का फेंसला जहाँ बेहतर प्रायश्चित हुआ वहीँ लघु कथा विजातीय विवाह करने वालों के रिश्तेदारों की ओछी मानसिक सोच को भी दर्शाती है जिन्हें दौलत से तो मतलब है उनकी बच्ची से नहीं
बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० पवन जैन जी हार्दिक बधाई |
कथा के मर्म को स्पष्ट कर सराहना हेतु आभारी हूँ आदरणीय राजेश कुमारी जी ।
धन्यवाद आदरणीय कल्पना जी ।
कथा कई जगह वास्तविकता से दूर जा रही है, किसी के द्वारा किसी का बच्चा माँगना और उसके सगे दादा के द्वारा बाआसानी बच्चायूँ किसी गैर को दे देना, बात गले से नहीं उतरतीI उससे भी अहम बात, कोई किसी को मिलाकर खुद को कैसे दोषी समझ सकता है? रचना पर वांछित मेहनत नहीं की गई आ० पवन जैन जी जिस वजह से रचना कोई ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाईI बहरहाल, सहभागिता हेतु बधाई अवश्य स्वीकार करेंI
(आशिया=आशियाँ)
आभारी हूँ आदरणीय कथा पर समय दे कर समीक्षा करने हेतु ।
धन्यवाद आदरणीय शहजाद जी ।
बहुत मार्मिक, हृदयस्पर्शी कथा | हार्दिक बधाई स्वीकाए करे आ. पवन जी !
धन्यवाद आदरणीय कालीपद प्रसाद जी ।
आदरणीय पवन जी आप ने बहुत सुन्दर विषय उठाया है. इस हेतु बधाई आप को.
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