आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हर सच्चे गुरु को पता होता है कि शिष्य को संवारने के लिये, कब हाथ पकड़ना है और कब हाथ छोड़ना, और उसके बाद अपने कृत्य को अहम् कह देने से गुरु का गुरुत्व खत्म नहीं होता, वरन और बढ़ जाता है| आपकी रचना के अंत में अपने नाम से आगे गुरु का नाम लिख कर शिष्य के समर्पण का सन्देश देने वाली पंक्ति भी बहुत अच्छी लगी, आदरणीया राजेश कुमारी जी| इस सार्थक लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
आद० चंद्रेश कुमार जी,लघु कथा के मर्म तक पँहुच कर की गयी इस समीक्षा की बहुत शुक्रगुजार हूँ आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार |
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती तथा सन्देश देती सुंदर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मोहतरम तस्दीक अहमद जी,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार |
बहुत ही उम्दा लघुकथा है आदरणीया राजेश मैम। हार्दिक बधाई प्रेषित है, सादर!
आद० महेंद्र कुमार जी,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार |
प्रिय अर्चना जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार |
आद० राजेन्द्र कुमार जी, लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई | किन्तु लघु कथा में दलित कन्या ने मरकर क्या बलिदान दिया क्यूँ मरी उस घटना इस वृद्ध का क्या लेना देना था ये पाठकों को भी तो पता लगे आप लिख रहे हैं आपको तो पता होगा किन्तु हमे कैसे लगे की वो वृद्ध तथा हवेली वाले कैसा व् क्यों प्रायश्चित करेंगे|
कथा समझ नहीं आई आ० राजेन्द्र गौड़ जी .
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