आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक धन्यवाद आपका अनुमोदन हेतु.
आ.विजय शंकर जी आपने अफ़सरशाही की विरासत को हूबहू संवादो मे ढाला है जो प्रवाहमयी भी है. बहूत-बहूत बधाई आपको इस रचना के लिए
मोहतरम जनाब विजय शंकर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती और अफसर शाही प् आधारित लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
अफसरशाही का एक अच्छा खाका खीचा है आपने
काम न करने की प्रवृत्ति लिये कितने ही अधिकारी बिलकुल इसी तरह करते हैं, जैसे आपने अपनी रचना में दर्शाया है| साथ में अपने मातहतों को निर्देश भी देते रहते हैं कि, हम जन तुम्हारी उम्र के थे, तब ये करते थे वो करते थे, अब तुम्हारी बारी है| बढ़िया रचना के सृजन हेतु सादर बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर|
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