आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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सीख(विरासत विषयाधारित)
वयोवृद्ध एवं प्रसिद्ध पत्रकार ने अपने समाचारपत्र के मुख्यसम्पादक पद से सेवानिवृति का फैंसला ले लिया।सेवानिवृति वाले दिन उसने अपनी कलम अपने पुत्र को सौंपते हुए कहा - अब तक मैंने इस कलम के दम पर न सिर्फ अपने इस अखबार को बुलंदियों पर पहुँचाया बल्कि खुद अपना भी एक खास मुकाम हासिल किया।
पुत्र कलम को पकड़ते हुए नत हो,अपने पिता की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था।
पिता ने आगे जोड़ा-ध्यान रहे,बड़े लोगों के द्वारा दिए गए पूरे बयान कभी खबर नहीं बनाए जाते,उनके बयान में से उस सही लाइन को छाँटो, जो गलत का इशारा करती हो।
पुत्र ने अचंभित और संशयित होकर पिता की ओर देखा।
-ऐसे क्या घूर रहे हो? पत्रकारिता की दुनिया में कामयाबी हासिल करना और नाम कमाना चाहते हो कि नहीं?
पिता ने गम्भीरता से समझाया।
कलम को सम्भालकर पुत्र ने पिता के चरणस्पर्श कर लिए।
मौलिक एवं अप्रकाशित
कलम को अपना धर्म निभाना, आज कल कुछ और ही दिखाई दे रहा, ज्यादातर पत्रकारिता में , सतविन्द्र जी सुंदर लघुकथा के लिए बधाई कुबूल करें
//उनके बयान में से उस सही लाइन को छाँटो, जो गलत का इशारा करती हो।//
वाह वाह वाह, क्या कहने हैं भाई सतविन्द्र कुमार जी, गज़ब की बात कह गए इस लघुकथा मेंI ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI कुछेक टंकण त्रुटियाँ हैं, मगर वे इस अच्छी लघुकथा के सामने गौण हो गई हैंI
//उस सही लाइन को छाँटो, जो गलत का इशारा करती हो।// बहुत ही गूढ़ बात कह दी आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी| सादर बधाई आपको, इस रचना के सृजन हेतु|
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
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