आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।गज़ब की लघुकथा प्रस्तुत की है आपने।
बहुत ही उम्दा लघुकथा है आपकी आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, हार्दिक बधाई!
वाह, क्या बेहतरीन रचना लिखी है आपने विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
अपना घर ( विरासत)
" अरे !वाह !क्या बात हैं, आज सुबह-सुबह? लेकिन चेहरे पर बारह क्यों बजे हैं ? "नीता ने सुधा से पूछा
गृहक्लेश से मुरझाई सुधा नीता के समक्ष रो पड़ी " क्या करूँ ?तुम ही बताओ ? उन्हें लगता हैं जो विरासत नील की हैं उसपर मैं नागिन की तरह कुंडली मारे बैठी हूँ।"
" लेकिन क्या उन्हें नहीं पता की , तलाकशुदा का दंश झेलते हुए भी तुमने नील की पढाई पर कोई आंच नहीं आने दी।यहाँ तक की अपनी बेटी की भी परवाह नहीं की "
" वो तो बड़ी होने के नाते मेरा फर्ज था लेकिन मेरे प्रति किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं।"
" शायद इसीलिए लोग कहते हैं स्त्री का पुरुष के बिना कोई वजूद ही नहीं हैं।"
" नहीं नीता, स्त्री को मायका ,ससुराल विरासत में मिलते हैं लेकिन मैं इसे नकार कर अपना घर बनाऊँगी।"
मौलिक व अप्रकाशित
आ. आर्चना जी थोडे शब्दो मे आपने वास्तव मे एक शानदार लघुकथा कह दी. सच है मायका और ससुराल तो विरासत मे मिलते है.लेकिन अपने दम पर घर बनाना आसान नही. बधाई आपको इस दृढ कथा के लिए
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