आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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रचना का सन्देश पूरी तरह स्पष्ट नहीं है आरिफ साहब... राहुल के पिता ने (सामान्यतः जो कोई भी समझता है) अच्छा काम किया लेकिन क्या अख़बार में नाम के लिए?
लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है आ० मोहम्मद आरिफ साहिब, बधाई स्वीकारेंI
बहुत सुंदर और प्रेरक रचना विषय पर, बधाई आपको
बहुत बढ़िया रचना ..मुझे बहुत अच्छी लगी आज हर भारतीय में इस जज्बे की ज़रुरत है ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
बढ़िया कथा | हार्दिक बधाई
बहुत ही प्रेरक व सुन्दर कथा.
~कीमत~
"वाह भई, कलम के सिपाही भी यहीं मौजूद हैं | परन्तु कमल का उपयोग ऐसा न करना कि यहाँ उपस्थित सबके राज से ही पर्दा उठ जाय|" pwd में कार्यरत अधिकारी चुटकी लेता हुआ बोला |
"काहे के सिपाही| बस चल रही हैं आप सब की कृपा से| कलम तो आप सब के हाथ में भी हैं, जैसे चाहे घुमाये आप सब |" पत्रकार बोला|
" पर पत्रकार भाई, आजकल प्रभावी तो आपकी ही कलम ज्यादा हैं | आपकी कलम घूमते ही सब घूम जाते हैं | फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है| आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं कर गुजरते हैं | आपको चाय पानी देना बहुत जरुरी हैं | वरना तो बिन पानी मछली की तरह तड़पना पड़ता है उसे|" डाक्टर साहब बोल उठे|
ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोल उठा-"पर ये ताकतवर कलम हम तक नहीं पहुँच पाती|"
"क्यों भई, आप दूध के धुले तो हैं नहीं|" गाँव का प्रधान बोला|
"अरे कौन मूर्ख कहता हैं कि दूध का धुला हूँ | पर काम ऐसा हैं कि मूर्ख को मूर्ख बना जाता हूँ | जल्दी किसी को समझ नहीं आता है मेरा खेल|" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरे जैसे इसका दम्भ था उन्हें |
सारी नदियाँ जैसे समुद्र से मिलती हैं | विधायक महोदय के आते ही उनसे मिलने उनके नजदीक पहुँच गईं|
"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये बड़ी मेहरबानी होगी आपकी |" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोल पड़ा |
"बिल्कुल मिल जायेगा, कल आ जाइये हमारे आवास पर | मिल बैठकर बात करतें हैं|"
"क्यों ठेकेदार साहब आप काहे बच बचा निकल रहें हैं | फिर पास बुला फुसफुसाते हुए बोले- "अमे मिया ये कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका| इतने कम में तो मैंने तुम्हारा पास करवा दिया था फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...|"
"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा| गलती हो गयी माफ़ करियेगा |" हाथ जोड़ते हुए नेता जी की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा |
"अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें | आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो हम आपका रखेंगे |" विधायक साहब कान के पास बोले |
"जी सर, इस बार दंगे की तलवार से मेरा सिर कटने से बचा लीजिए, नौकरी के दामन पर दाग़ नहीं लागना चाहता | आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा |"
सुनकर नेता जी मुस्करा पड़े| सारे लोगों से मिलने के पश्चात वापस जाते हुए उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी | दो साल पहले तक जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था| आज अपने सामने बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे खड़े देख गर्व कर रहा था|
तभी एक किसान का इंजीनियर बेटा सबसे मुखातिब हुआ| स्टेज पर चढ़ उसने कहा- "आप में से कुछ ने मेरे पिता को दुःख पहुँचाया हैं | उनके आत्महत्या में हाथ भी आप सब का हैं | फिर उसने सब को ऐसा आईना दिखाया कि सब के होश पख्ता हो गये | सबकी तस्वीरें और फुसफुसाहटें वीडियों में साफ़-साफ़ सुनी जा सकती थीं|
बाजी पलट चुकी थी! नेता से लेकर ठेकेदार तक अब सब उसके कदमों में लोट रहे थे। अब वह अपनी कीमत आँकने में लगा था!!
"मौलिक व अप्रकाशित"
उलझन सुलझाना बड़ा मेहनत का काम है फिर भी देखते है ..शुर्किया आपका
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