आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मोहतरम जनाब विनोद साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
काफी समय बाद आपकी लघुकथा आयोजन में देखकर अति प्रसन्नता हुई। आप बेहतर लघुकथाकार हो, आपकी उपस्िथती मंच के लिए बहुत अहम है । प्रस्तुत लघुकथा के लिए सादर बधाई /
वल्दियत – (लघुकथा ) –
सुबोध की शादी के बारह साल बाद बेटा हुआ था।नामकरण संस्कार पर बहुत बड़ी दावत रखी थी।दावत में यार दोस्त, रिश्तेदार,अड़ौसी पड़ौसी सब एकत्र हुए थे।खुशी का माहौल था।कुछ मुँह लगे दोस्त सुबोध से ठिठोली भी कर रहे थे।
"भाई सुबोध, बता तो सही,आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे"।
"कैसा चमत्कार"।
"यही जो बारह साल बाद तेरे घर में हुआ"।
"तुम लोग भी यार कमाल की बात करते हो।यह तो साधारण सी बात है।इसमें चमत्कार कैसा"।
"तो बारह साल से क्यों नहीं हुआ"।
"ऊपरवाले की मर्जी"।
"ऊपरवाला यानी तेरा किरायेदार"।
"यार तुम लोग अब अपनी सीमा पार कर रहे हो"।
"अबे यह हम नहीं कह रहे, तेरे मोहल्ले वाले कह रहे हैं।हर एक के मुंह पर यही बात है”|
“देखो दोस्त, इस तरह के हालात में हर कोई बकवास करने को आज़ाद होता है"।
"तो तुम अपनी बीवी से सच्चाई क्यूं नहीं पूछ लेते"।
"वाह,क्या सलाह दी है, तुम मेरे दोस्त हो।ठीक है मैं यह भी कर सकता हूं।मगर पहले मुझे यह जानना है, तुम लोगों में कितनों ने अपनी पत्नियों से अपने बच्चों की वल्दियत की सच्चाई पूछ ली है"।
"यार तू पागल है, हम क्यों ऐसी बात पूछेंगे।हमारा मसला ऐसा थोड़े ही है"।
"दोस्त, एक स्त्री से उसके बच्चे के बाप के बारे में पूछना, वह भी उसके पति द्वारा, इसका मतलब समझते हो"।
"देख भाई, मन में शंका हो तो पूछ लेना चाहिये"।
"पहली बात आप जैसे ही यह प्रश्न अपनी बीवी से करोगे, मतलब उसके चरित्र पर संदेह, यानी अपने ही हाथों अपनी खुशहाल गृहस्थी में पलीता देना और दूसरी बात, उसके उत्तर देने से पहले ही आपकी खुद की मर्दानगी भी दाँव पर"।
मौलिक व अप्रकाशित
बढ़िया कथा हुई है, बधाई स्वीकार करेंI
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
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