आदरणीय साथिओ,
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अपने रचना के मर्म को समझा है भाई मिथिलेश जी, आप जैसे गुणी साहित्यकार की सराहना पाकर मन अति प्रसन्न है, दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर
हार्दिक आभार आ० माला झा जी.
सातवें आस्मान पर उड़ रहा हूँ मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब, ज़र्रे को आफताब बनाने का हुनर कोई आपसे सीखेंI आपकी हौसला अफजाई से मेरा हौसला दोबाला हुआ, तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँI
सर आपकी कथा मे हमेशा एक नयापन होता है.पढ़ते पढ़ते आप कथा को एकदम ऐसे ट्विस्ट कर देते हो कि सोच ही नही पाते.अपने आपमे हर कथा आपकी एक पाठशाला होती है. अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी जो आज गुम हो गया है वाक़ई यह दर्दनाक स्थिति है . साधुवाद आपकी सोच को . हार्दिक बधाई आदरणीय सर
दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ मोहतरमा कल्पना भट्ट जी, इस ट्विस्ट को हमारे गुरु लोग किसी ज़माने में कथा की पूंछ मरोड़ना कहा करते थे. आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया :)
आज कल खेल सिर्फ खेल की भावना से नहीं पैसा बनाने की भावना से खेला जाता है वो भी स्पेश्यली क्रिकेट में ..दुनिया इसी दौलत की चकाचौंध में हॉकी जैसे भारत से शुरू होने वाले खेल को कोई तवज्जो नहीं देती दादा जी की हॉकी की स्टिक को तो दर्द होना लाजमी है पोता खेलने से पहले एड में भी काम करने लगा अर्थात पैसा बस पैसा खेल का जो हो सो हो |बहुत बेहतरीन विषय पर लघु कथा आई है आपको आद० योगराज जी जिसके लिए बहुत बहुत बधाई आपको |
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी।लाज़वाब लघुकथा। सामयिक घटना क्रम को दर्शाती बेहद खूबसूरत रचना। धीरे धीरे हॉकी को पीछे धकेल कर क्रिकेट के आगे आने का शानदार चित्रण।पुनः बधाई।
हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जी.
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