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ओबीओ लाइव महा-उत्सव अंक 24  का आयोजन दिनांक 06 अक्तूबर से  08 अक्तूबर के मध्य सम्पन्न हुआ. जिसके संचालन का जिम्मा इस बार ख़ाकसार पर था. इस बार रचनाधर्मियों को विषय के रूप में नारी-शक्ति  दिया गया था, जिसके पीछे  मूल मंतव्य यह था कि माह अक्तूबर भारतवर्ष सहित समस्त विश्व में भारतीयों और हिन्दु जीवनावलंबियों के लिये दूर्गापूजा और दशहरा का त्यौहार लेकर आया है. हालाँकि, दोनों त्यौहारों की अलग-अलग अवधारणाएँ हैं. लेकिन हेतु एक ही है. जहाँ देवी दूर्गा समस्त पौरुषीय ऊर्जस्विता तथा समवेत वीर्यता का अद्भुत मानवीयकरण हैं, वहीं दशहरा की पृष्ठभूमि ही राम की ’शक्ति-पूजा’ है.

विचार यह बना कि शक्ति की इस उन्नत अवधारणा को प्रतिपादित कर चुके भारतीय जन-समाज में आज के संदर्भ को देखते हुए नारी के उज्ज्वल तथा सकारात्मक पक्ष को प्रस्तुत किया जाय. इस तथ्य की पृष्ठभूमि बना यह वाक्य कि ’शक्ति’ केवल संहार नहीं, सृजन तथा पुरुषोचित विजय-उद्घोष का भी मूल है.

यह एक चुभती हुई सच्चाई है, कि महिमा-मण्डन भारतीय जन-मानस हेतु एक तरह से जैविक गुण की तरह है. 
हम यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता  यानि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहीं देवता बसते हैं, कहने में कभी कोताही नहीं करते लेकिन भारतीय समाज में सारी बन्दिशें इन पुजनीया के पैरों में ही डाली जाती रही हैं. आज भी ! यह कहते हुए कि विश्वासो नैव कर्तव्यः स्त्रीषु   यानि, स्त्रियों पर कभी विश्वास मत करो. भरा-पूरा समाज इन अर्थों में बिना पलक झपकाये लगातार हाइपोक्रीट की तरह व्यवहार करता दीखता है ! 

इस तथ्य के आलोक में महा-उत्सव का आयोजन वस्तुतः एक चुनौती था.
इस चुनौती को स्वीकार करते सबसे पहले अपनी गरिमामयी उपस्थिति के साथ प्रस्तुत हुए आदरणीय आलोक सीतापुरी जी जिनकी सवैया छंद में आबद्ध प्रस्तुति मंगलाचरण की तरह हर पाठक द्वारा गायी गयी.

आयोजन पूरे तीन दिनों तक चला, हालाँकि विषय के विशिष्ट होने के कारण प्रारम्भ में रचनाकारों का उत्साह अत्यंत संयमित रहा. परन्तु, एक बार दिशा स्पष्ट होते ही साहित्य प्रेमियों ने इस आयोजन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ! छंदबद्ध रचनाओं में मत्तगयंद सवैया, दुर्मिल सवैया, घनाक्षरी, दोहे, कुण्डलिया, सार छंद, तटांक छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हुईं, तो सामान्य पदों में गीत, ग़ज़ल, अतुकांत कविताएँ, तुकांत कविता, जापानी पद्य विधा हाइकू में भी प्रविष्टियाँ आयीं.  प्रविष्टियों के माध्यम से शक्ति का मानवीयकरण नारी के हर पहलू पर रचनाकारों ने ध्यान आकृष्ट किया. 
 
17 रचनाकर्मियों द्वारा कुल 30 स्तरीय रचनाएँ इस आयोजन में पेश की गयीं. इस लिहाज से कुल 931 प्रतिक्रियाएँ संतोषजनक ही हैं.

सर्वश्री आलोक सीतापुरीजी, अम्बरीष श्रीवास्तवजी, धर्मेन्द्र कुमार सिंहजी, लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवालाजी, राजेशकुमारीजी, प्रदीप कु. कुशवाहाजी, सीमा अग्रवालजी, अशोक कुमार रक्तालेजी, रेखा जोशीजी, डॉ.प्राची सिंहजी, सतीश मापतपुरीजी, अब्दुल लतीफ़ खानजी, शैलेन्द्र ’मृदु’जी, संदीप कुमार पटेलजी, विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी, पियुष द्विवेदी ’भारत’जी तथा सौरभ पाण्डेय ने अपनी-अपनी रचनाओं से पाठकों का मनस-रंजन किया तथा शक्ति के पौराणिक स्वरूप को प्रतिस्थापित तो किया ही किया, इस मंच के माध्यम से आज के समाज की विडंबनाओं पर भी भरपूर प्रहार किया. इन सबके बावज़ूद यह अवश्य मानना पड़ेगा कि विडंबनाओं पर प्रहारों के बावज़ूद इस मंच का वातावरण अनवरत संयत, सहज और शिष्टवत बना रहा.
 
इस तथ्य के प्रति मैं यह कहने का सादर अनुमोदन चाहूँगा कि ’सीखने-सिखाने’ की परंपरा का निर्वहन अवश्य ही इस मंच पर वातावरण विशेष की मांग करता है, जिसे प्रधान सम्पादक के कुशल नेतृत्व में प्रबन्धन समिति और माननीय सदस्यों द्वारा हार्दिक संलग्नता के साथ बूँद-बूँद कर सुगठित किया गया है.  यदि शिष्टाचारवत श्रद्धा-स्नेह के सम्बोधन शब्द एवं तत्व हाशिये पर रख दिये गये तो परस्पर सम्मान और कुछ तथ्यपरक ’सुनने’ की प्रवृति पर ही पहली चोट पड़ेगी. इस तरह की चोटों से नेट पर कई पटल आये दिन दो-चार होते रहते हैं. ओबीओ पर इस तरह का विशेष माहौल है तो यह कई प्रबुद्ध कारणों से है और इन प्रबुद्ध कारणों पर कभी कोई प्रश्न उचित नहीं होगा. 

इसी तथ्य के आलोक में तथा ओबीओ की समृद्ध परंपरा के अनुसार इस बार भी पाठकों और सुधीजनों ने प्रस्तुतियों और प्रविष्टियों पर अपनी प्रतिक्रियाएँ केवल वाह-वाही तक ही सीमित नहीं रखीं.  बल्कि उन्होंने आवश्यकतानुसार प्रविष्टियों पर अपने बहुमूल्य सुझाव भी दिये. सभी रचनाओं के हरेक पहलू पर हुई खुली विवेचनाएँ न केवल रचनाकारों के लिये लाभकारी होती हैं, बल्कि उन पाठकों के लिये भी उपयोगी हुआ करती हैं जो रचनाधर्मिता के महीन तथ्यों को जानने-समझने के लिये चुपचाप इस मंच पर आया करते हैं.  ऐसी विवेचनाएँ,  प्रदत्त सलाह और निरंतर संवाद किसी आयोजन को जीवंत बनाने का माद्दा रखती हैं. इन्हीं मायनो में ओबीओ पर कोई आयोजन विलक्षण हो जाता है. 

आदरणीय अम्बरीष श्रीवस्तव जी की प्रतिक्रिया स्वरूप आशु रचनाएँ सामान्य पाठकों के लिये रोमांच का विषय हुआ करती हैं और अनुमोदन पाती हैं. आदरणीया राजेश कुमारीजी, गणेश जी बाग़ी, आदरणीया सीमाजी, आदरणीया प्राचीजी, आदरणीय धरम शर्माजी, आदरणीय धर्मेन्द्र सिंहजी, भाई वीनस जी, आदरणीय अशोक रक्तालेजी ने जिस प्रकार सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रियाएँ और टिप्पणीयाँ दीं, वो रचनाकर्मियों के लिये पाठ स्वरूप थीं.  अवश्य ही, रचनाकर्मियों का उत्साहवर्द्धन करती ये प्रतिक्रियाएँ कोरी वाह-वाही तक कत्तई सीमित नहीं होतीं, बल्कि मार्गदर्शन करती हुई स्पष्ट हुआ करती हैं. मैं व्यक्तिगत तौर पर इस मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज भाईजी की अदम्य सहभागिता हेतु सादर धन्यवाद देता हूँ, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अति विकट परिस्थितियों में होने के बावज़ूद रचनाकर्मियों का उत्साहवर्द्धन करने हेतु उपस्थित तो हुए ही, श्वेत-श्याम टिप्पणियों द्वारा साहित्यिक सलाह भी देते रहे.  हम सभी सदस्यगण आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की हार्दिक कामना करते हैं.  आपका मार्ग-दर्शन इस मंच को हर समय अपेक्षित है. लेकन दूसरी ओर, ओबीओ के कई वरिष्ठ सदस्यों की अनुपस्थिति या चलताऊ उपस्थिति कइयों को खली है. यों यह भी तथ्यपरक है कि व्यक्तिगत या अन्यान्य व्यस्तताएँ किसी सदस्य के लिये एक बहुत बड़ा कारण हो जाया करती हैं.  और इसे सहजता से समझा और लिया जाना चाहिये. 

मैं आयोजन महा-उत्सव अंक - 24 में सम्मिलित सभी रचनाकर्मियों और पाठकों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ और आशा करता हूँ कि सभी का सहयोग एवं स्नेह इस मंच को इसी तरह अनवरत प्राप्त होता रहेगा. मैं अंत में इस मंच के मुख्य प्रबन्धक भाई गणेश जी बाग़ी तथा प्रधान सम्पादक आदरणीय श्री योगराज प्रभाकरजी को इस सफल आयोजन पर हार्दिक बधाई देता हूँ.
 
जय ओबीओ.. . सादर.. .

सौरभ पाण्डेय

संचालक ’महा-उत्सव’
सदस्य - प्रबन्धन समिति, ओबीओ. 

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आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी 

सादर सुप्रभात !

महोत्सव अंक २४ "विषय- नारी शक्ति " की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ कर आनंद आ गया. ओबीओ में महोत्सव आयोजन के तहत जो सकारात्मक उर्जा सभी रचनाकारों और पाठकों के मनस अंतर में प्रवाहित होती है, उसको शब्दों में कह पाना संभव न होगा. इस रिपोर्ट को पढ़ कर फिर उसी दिव्य चेतना का अनुभव हुआ.

सीखने सिखाने की सभ्य सुसंस्कृत परिपाटी ओबीओ का सबसे विशिष्ट, सबसे एहम गुण है, और यह ही इस मंच पर संचारित होते सकारात्मक ओजस्व का कारण भी है.

इस बार महोत्सव का विषय "नारी-शक्ति" बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि रचनाकार का धर्म केवल रचनाक्रम में प्रविष्टिया देते जाना या आत्म- मुग्धता से बुने स्वप्न जाल में सबको आकर्षित करना नहीं होता , बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदार चिंतन को दिशा देना भी होता है. यह विषय समाज का आइना सा बन कर सामने आया और सबने अपनी लेखनी को समृद्ध करने के साथ ही विषय निहित तथ्यपरकता को समझा बूझा और अवश्य ही समाज के लिए हितकारी सूक्ष्म  ज्ञान को भी हृदयंगम किया.

इस विस्तृत रिपोर्ट के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी.

सादर.

डॉ.प्राची, सद्यः समाप्त हुए आयोजन महा-उत्सव अंक - 24 की रिपोर्ट पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिये हार्दिक धन्यवाद.

आयोजन के मुख्य विन्दुओं और व्यतीत पूरी प्रक्रिया पर यदि हम दृष्टि डालें तो कई महत्त्वपूर्ण बातें स्पष्ट होती हैं, जिनका यदि आज इस मंच पर और इसके माध्यम से निर्वहन हो रहा है तो इसका सीधा श्रेय सुधी रचनाकारों और जागरुक पाठकों को ही जाता है. सभी सदस्यों का ऐसे माहौल में जहाँ आभासीपन इतना हावी हो, परस्पर भौतिक उपस्थिति की अनुभूति करना अवश्य ही इस मंच की विशेषता है.

आपने सर्वथा उचित कहा है कि  रचनाकार का धर्म केवल रचनाक्रम में प्रविष्टिया देते जाना या आत्म- मुग्धता से बुने स्वप्न जाल में सबको आकर्षित करना नहीं होता , बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदार चिंतन को दिशा देना भी होता है.
इस पंक्ति से निस्सृत भावनाएँ किसी रचनाकार को समाज से जोड़ देने में सक्षम हैं, जो कि साहित्य का वास्तव में लक्ष्य है. किसी रचनाकार की आपबीती भी समाज के बहुत बड़े समूह को प्रभावित करती है अतः बिम्ब और प्रतीक सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक होने ही चाहिये. ताकि वे बड़े तबके को सदा-सदा संदेश देते रहें.

आपकी प्रस्तुत सकारात्मक टिप्पणी हेतु आपका पुनः आभार.

सीखने सिखाने की सभ्य सुसंस्कृत परिपाटी ओबीओ का सबसे विशिष्ट, सबसे एहम गुण है, और यह ही इस मंच पर संचारित होते सकारात्मक ओजस्व का कारण भी है.

डॉ प्राची जी।।सही फ़रमाया आपने।।
पूज्य गुरुदेव श्री सौरभ जी सादर नमन!अत्यंत सारगर्भित रिपोर्ट है,पढ़कर मन आह्लादित व फ्लैशबैक में चला गया।इस उत्कृष्ट रिपोर्ट के लिए आप बधाई के पात्र हैं।महोत्सव में सम्मिलित सभी रचनाकारों और उनकी रचनाओं को हृदय से आभार।सच कहा आपने समयाभाव के कारण बहुत से सहभागी सदस्य केवल झलक दिखलाकर गायब हो गये उनमें से एक मैं भी हूं।मैं अपनी दे रचनाओं को नहीं पोस्ट कर पाया।और न ही अपने साथियों की रचनाओं पर प्रतिक्रिया ही दे पाया,जिसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
इसबार का महोत्सव शीर्षक वास्तव में अपने भीतर कई गुत्थियों को समेटे हुए था,जिसमें से काफी रहस्यों का पटाक्षेपण हुआ।जहां एक तरफ हम नारी को पूज्यनीया समझते हैं वहीं उसको तिरस्कृत करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।हमारे समाज की यह द्वैधता निस्संदेह विद्रूपता की प्रतीक है।किन्तु महोत्सव में प्रस्तुत रचनाओं से लगा कि परिदृश्य में परिवर्तन हो रहा है जो सकारात्मक संकेत है।

अनन्य भाई विंध्येश्वरीजी, आपकी जागरुकता का यह मंच प्रारम्भ से कायल है. इस मंच से आपका जुड़ाव सभी सदस्यों को अभिभूत करता है.
सद्यः समाप्त आयोजन महा-उत्सव अंक - 24 पर प्रस्तुत रिपोर्ट से रचनाधर्मिता के क्रम में आत्म-मंथन हेतु सकारात्मक विन्दु सुलभ हो पाये यह हमसभी के लिये संतोष का विषय है. आपकी उदार स्वीकृति से, सही कहिये, आयोजनों का हेतु सधा गया प्रतीत हुआ है, जोकि इस मंच के सभी आयोजनों का मुख्य उद्येश्य है. आपकी संयत साहित्यिक सक्रियता इस मंच की मांग है.

इस उत्साहभरी प्रतिक्रिया हेतु आपको पुनः धन्यवाद कह रहा हूँ.

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपने बहुत ही समृद्ध और उन्नत शब्दों के चयन से इस महोत्सव की जानकारी प्रस्तुत की है
सर्वप्रथम तो इस दुष्कर कार्य के लिए ह्रदय से आपको साधुवाद प्रेषित है
आपने बिंदु दर बिंदु हर बात पर प्रकाश डालते हुए उत्साह  के साथ साथ कहीं कहीं मन में उत्पन्न हुआ क्षोभ भी प्रकट किया है
आपने विविधता भरे इस मंच में सीखने सिखाने की इक परंपरा को इक नया आयाम देते हुए इस उन्नत रिपोर्ट को शब्द बध्द किया है
फिर आपने मंच में विद्यमान हर विशिष्ट सदस्य के साथ साथ साधारण सदस्यों और पाठकों को धन्यवाद प्रेषित किया है जो सभी के लिए किसी औषधि से कम नहीं है
इससे निश्चित ही सभी के उत्साह में उत्तरोत्तर बृद्धि हुई है
आपने व्यक्तिगत कारणों से मंच को समय न दे पाने वाले सदस्यों के प्रति भी मान प्रेषित किया है
आपके यही सारे गुण आपको इस मंच पर गुरुवर के उद्बोधन को साकार करता है
अपना स्नेह और आशीर्वाद हम जैसे नौसीखियों और चंचल शिष्यों पर सदैव बनाये रखिये आपका ह्रदय से धन्यवाद और आभारी हूँ

अभिन्न भाई संदीपजी, सद्यः समाप्त आयोजन महा-उत्सव अंक - 24 के रिपोर्ट पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी अभिभूत कर गयी. मेरा प्रस्तुतिकरण समीचीन लगा यह मेरे लिये निजी तौर पर तोषकारी है.
हम सभी परस्पर सीखते हैं, संदीप भाई तथा उसी का महत संप्रेषण या कुछ साझा करना सिखाना होता है. यह तो भारतीय भूभाग की परंपरा ही है जो ’उपनिषद’ के तौर पर पूर्वकाल से बनी हुई है.  जहाँ पूर्व के सीखे हुए अग्रज अनुजों के अंतर्निहित ज्ञान के प्रस्फुटन का कारण हुआ करते हैं. संपर्क में आये जिज्ञासु को साथ बैठा कर कुछ बताना ही ’उपनिषद’ की प्रक्रिया है. इस हिसाब से तो न कोई सिखाता है, न ही कोई सीखता है. बल्कि परस्पर आदान-प्रदान के आयाम सीखने और सिखाने के आयाम तय करते हैं.
अपने सद्-प्रयासों से आपने इस मंच का मान रखा है, संदीप भाई. आपको हार्दिक बधाई तथा रिपोर्ट को अनुमोदित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद.

आदरणीय सौरभ भाई जी, आपका यह आलेख रिपोर्ताज का एक बेहतरीन नमूना है. जिसे पढ़ कर पूरा आयोजन एक बार फिर से आँखों के सामने आ गया, बहुत ही जीवंत रपट है. आप ने बिलकुल सही फ़रमाया है कि ओबीओ पर कोरी वाह वाही नहीं  होती बल्कि हर आयोजन अंत में एक वर्कशाप हो निपटता है और यही इस मंच की खासियत है. अस्तरीय रचनायों को आयोजन से हटाने की परंपरा शुरू होना भी एक शुभ लक्षण है. कोई संदेह नहीं कि रचनायों का स्तर आयोजन दर आयोजन ऊपर की तरफ जा रहा है. लेकिन मुझे भी भी लगता है कि कुछ सदस्य अति उत्साह में बजाये गुणवत्ता के रचनायों की संख्या बढ़ाने में ज्यादा चिंतित दिखे. इसी समस्या के चलते मुशायरे में रचनायों की संख्या ३ से घटा कर २ कर दी गई है, यदि यहाँ ही क्वाँटिटी क्वालिटी पर हावी दिखी तो शायद रचनायों की सीमा घटने पर विचार करना पद सकता है. बहरहाल इस बेहद सुन्दर और सारगर्भित रपट पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.    

आदरणीय योगराजभाईसाहब, आपको महा-उत्सव अंक - 24 पर ज़ारी रिपोर्ताज़ के तथ्य सर्वथा उचित लगे एवं उनका साझा करना समीचीन लगा, यह मेरे लिये व्यक्तिगत उपलब्धि है. कारण कि, तथ्यों का प्रस्तुतिकरण लक्ष्य तक न पहुँच पाये तो अक्सर प्रयास उथला हो जाता है.

यह भी एक तथ्य है कि अपने मंच पर प्रारम्भ से अपनायी गयीं और क्रियान्वित हो रहीं कई परिपाटियों को समय-समय पर शाब्दिक करना आवश्यक हो जाता है. अपनाये गये नियम वस्तुतः प्रयासों में अनुशासन इन्फ्यूज करते हैं लेकिन उनके प्रारूप में भी समय के साथ  और वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन अपेक्षित होता है. सुधी सदस्यों के सुझाव तथा आपका अनुभवजन्य निर्णय मंच की गरिमा और प्रयास को बहुमुखी ऊँचाई देंगे, यह कहने की बात नहीं.

आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की हार्दिक शुभ-कामना के साथ आपका पुनः आभार.

आदरणीय सौरभ भाई साहब, आप के कुशल मंच संचालन में हम लोग लगातार साहित्य सरिता में गोते लगाते रहे, विषय अपेक्षाकृत कठिन होते हुए भी जिस तरह से सदस्यों ने सारगर्भित और उम्दा रचनायें प्रस्तुत कीं उसकी जितनी तारीफ़ की जाय वो कम है, आगामी त्योहारों के मौसम को देखते हुए आपने बहुत ही सार्थक विषय "नारी शक्ति" का चुनाव किया था, पुरुष साहित्यकारों के साथ साथ महिला साहित्यकारों ने भी बहुत बढ़ चढ़ कर इस महोत्सव में अपनी रचनाओं से चार चाँद लगाया |

मैं महोत्सव में सम्मलित सभी सदस्यों का आभार प्रकट करने के साथ साथ विशेष रूप से आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीया रेखा जोशी जी, आदरणीया डॉ प्राची जी, आदरणीया सीमा अग्रवाल जी को धन्यवाद देना चाहूँगा, आप सबने आयोजन में रचना और टिप्पणियों के माध्यम से आयोजन को एक अलग ऊँचाई दी | मैं बधाई देना चाहूँगा आदरणीय अम्बरीश भाई जी को जिन्होंने छंदबद्ध रचनाओं से महा उत्सव को एक अलग ही दशा और दिशा प्रदान की, मैं बधाई देना चाहूँगा ओ बी ओ के प्रधान संपादक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी को जिन्होंने अस्वस्थता के बावजूद भी अंत तक अपनी उत्साहवर्धक टिप्पणियों से आयोजन की रोचकता बनाये रखा |

अंत में मैं आदरणीय सौरभ भाई साहब को आपके कुशल मंच संचालन, महोत्सव में प्रस्तुत रचना और इस बेहतरीन रिपोर्ट पर बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद प्रेषित करता हूँ |

सादर |

गणेश जी बागी

संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक

ओपन बुक्स ऑनलाइन

भाई गणेशजी, आपकी सहयोगी प्रतिक्रिया और तदनुरूप संदेश अभिभूत हृदय के भावों को और गहरा कर गयीं. इस मंच की विशेषताओं में यह भी शुमार है कि हमसब समवेत सीखते हैं.  इस आयोजन ने मात्र तीन दिनों में जितने उतार-चढ़ाव देखे उसका ज़िक़्र करना आवश्यक था.

आयोजन में सभी रचनाकारों और पाठकों की हार्दिक सहभगिता और बढ़े, इसकी हार्दिक अपेक्षा है. 

आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.

आदरणीय सौरभ जी महोत्सव अंक २४ "विषय- नारी शक्ति  का इतना उत्कृष्ट विवरण पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई  इसके लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको पहले तो विषय ही इतना चुनौती भरा था जिसके लिए लेखक को अपने आंतरिक अनुशासित संयमी भावों को अपनी कलम से निकालना था जो सभी लेखकों ने बखूबी किया आज के माहौल में ऐसे सामयिक विषय जो लोगों में जागरूकता लाये, पर ऐसे महोत्सव आयोजित करना भी बड़ी उपलब्धि है इसके लिए ओ बी ओ का यह मंच बधाई का पात्र है 

साथ ही आप जैसे प्रबुद्ध जनों के निरंतर सहयोग और निर्देशन से सभी का उत्साह वर्धन ,ज्ञान वर्धन होते हुए लेखन में अभिरुचि बनी रही और यह महोत्सव सफल हुआ इसके लिए आप सब भी बधाई के पात्र हैं 

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