आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा बहुत ही अच्छी हुई है भाई उस्मानी जी, हर कदम पर एक नया भंवर उभर कर सामने आय हैI प्रदत्त विषय को जिस कुशलता से परिभाषित किया है उस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया लघुकथा है आ. शेख़ शहजाद उस्मानी जी. बहुत ही सहजता से आपने अपनी बात कही है. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. एक बार शीर्षक को पुनः देख लीजिएगा. सादर.
आज के समय में इस तरह की सोच रखना कतई बुरा नहीं है, बिटिया कपडे अपनी सहूलियत के हिसाब से ही पहनेगी, न की पिता की पुरानी सोच के हिसाब से| हां ये पिज़्ज़ा बर्गर जरूर नुक्सान पहुंचाते हैं बच्चों को, इसलिए इनसे बचाने की जरुरत है उनको| रचना में एक पहलू तो आपका ठीक लगा लेकिन दूसरा पहलू गले नहीं उतरा आ शेख जी, लड़कियों पर बंधन थोपने से बेहतर है लड़को को काबू में रखा जाए| बहरहाल बधाई इस प्रस्तुति के लिए
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