आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही भावपूर्ण कथा लिखी है आदरणीया जानकी जी , सच में ऐसा लग रहा है की आँखों के सामने सब घटित हो रहा हो | इस बेहतरीन कथा के लिए ढेर सारी बधाइयाँ |
बहुत अच्छी रचना कही है आदरणीया जानकी जी, सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
आ.जानकी जी संवादात्मक लघुकथा होते हुए भी आपने बहूत कुछ अनकहा छोड उसे बयां भी कर दिया. इस उत्तम प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करे
//अक्सर मुझे लगता है कभी हमारे सपनों का ये घर एक सघन वन में तब्दील हो गया है जिसके बियाबान मैं और तुम बातों की जुगाली करते हैं।"
फिर हौले से अपने हाथों में पति का बेज़ान हाथ लेकर सहलाने लगी।अब दोनों की ज़ुबान चुप है पर आँखें बहुत कुछ सवाल-ज़वाब बूझ रही हैं।// पति की बीमारी से जूझती पत्नी के भावनात्मक उतार चढ़ाव को बहुत मार्मिकता से उभारा है आपने आदरणीया जानकी वाही जी..... हार्दिक बधाई प्रेषित है
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