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हार्दिक आभार आ. कान्ता जी समीक्षा एवं उत्साहवर्धन हेतु
आदरणीय मित्र पिछले दिनों आपकी कुछ कथाएं पढ़ी, बहुत ही गंभीर व प्रभावशाली रचनाएं थी वह । आपसे अपेक्षाएं बढ् गई है । अापकी यह लघुकथा आपकी पूर्व की कथाओं के मुकाबले थोड़ी कमजोर रह गई। सनसनीखेज अंत कुछ जमा नहीं। ये वो कथा नहीं जिसकी वजह से सुधीर जी जाने जाते है । सादर ।
विषय से न्याय करती समाज की दोगली मान्यताओं दोगले चरित्र को दर्शाती लघु कथा बहुत बढ़िया लड़की आईपीएस बन गई तो वाह वाह ..गाँव का नाम रोशन हो गया यदि अपनी पसंद से विवाह कर लिया तो नाम डुबो दिया ...वाह रे मानसिकता
बहुत बढ़िया लघु कथा ..दिल से बधाई आ० विनोद खनगवाल जी.
आज भी कई समुदायों में अंतरजातीय विवाह को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता तथा सामजिक मान्यताएं अपने हिसाब से पहचान आरोपित करते हैं, लघुकथा अच्छी हुई है सन्देश स्पष्ट है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनोद जी.
मुझे इस लघुकथा ने बहुत प्रभावित किया है। वास्तविकता यही है कि निजी पहचान हर किसी की प्रिय होती है, और जब उस पहचान पर आक्रमण हो जाये तो बर्दाश्त नहीं होता। सुन्दरलाल अपनी जाति को अपनी पहचान मानता है। बेटी द्वारा अंतर्जातीय विवाह कर लेने से वह कहीं न कहीं इस पहचान को आहत हुआ पाता है, भले ही उस समय सुंदरलाल अपनी बेटी के निर्णय और ख़ुशी को अनदेखा कर देता है। यदि लेखक यहाँ आदर्शवाद में फंसकर रचना को कोई और मोड़ दे देता तो रचना मात्र एक नारा बन कर रह जाती। भाई विनोद खनगवाल जी, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आदरणीय विनोद जी,
सामाजिक ताना बाना इस कदर उलझा रहता है कि उसे समझना मुश्किल हो जाताहै. एक आइ पी एस के विजातिय से विवाह करने से सुन्दरलाल की सारी मेहनत खत्म हो गयी जो उसने अपनी वेटी को इस् मुकाम पर लाने के लिये किया था. मन के अन्तर द्वन्द्व को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है
सादर.
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