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एकतरफा प्रेम और अगर कोई एक पक्ष जज्बातों से खेलने वाला हो तो कमोबेश यही अंजाम होता है । अच्छी प्रस्तुति आदरणीय पंकज जोशी जी ।
धन्यवाद आदरणीय विनय कुमार सिंह जी
"लावारिस नशेड़ी कहीं का ...." सच में यही पहचान रह गयी है आज कई लोगों की...
पंकज जी सर, बहुत ही ज्वलंत मुद्दा है, खास तौर पर सोशल मीडिया में ऐसे कितने ही लोग मिल जायेंगे, जो इस तरह "जज्बातों से खेलने" वालों के चक्कर में फंस कर, खुद को समाप्त कर देते हैं| इस सार्थक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई सर !
भाई पंकज जोशी जी, प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है, जिस हेतु में बधाई स्वीकारें। सम्प्रेषण के स्तर पर अभी बहुत सुधार की गुंजाइश बाकी है। "जज़्बातों" एक गलत शब्द है, सही शब्द "जज़्बात" है। आ० सौरभ भाई जी की बातों का संज्ञान लिया जाना भी ज़रूरी है।
जब प्यार ही एकतरफा था तो जज्बात से खेलने की बात कहाँ से आ गयी ? खैर लघुकथा पर आपका प्रयास बढ़िया है, बधाई.
अत्यंत ज्वलंत विषय पर लघुकथा प्रस्तुत कर आपने इस आयोजन की गंभीरता को अक्षुण्ण रखने की कोशिश की है. हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ कह रहा हूँ, आदरणीय. शिल्प के तौर पर यह अवश्य है कि प्रस्तुति तनिक वाचाल हो गयी है. इससे बचना था. सिर्फ़ संवाद-संवाद में ही सारा मंज़र उतर आता. और, लघुकथा अपनी आखिरी पंक्ति हाजी साहब वक्त की नजाकत पहचानते हुये बात पूरी होने से पहले ही बाहर निकल चुके थे के साथ समाप्त हो गयी होती.
ऐसा मेरा मानना है.
बहरहाल .. पुनः बधाइयाँ
अच्छे विषय पर अच्छा प्रयास .
आदरणीय वीरेंदर जी एक ऐसा विषय जो आजकल कई विधाओं में पढने मिल रहा है उस विषय पर आपने अच्छी प्रस्तुति दी है, इन संवादों को या तो प्रतीकात्मक रखा जाता या कथा तत्व आ जाता तो रचना बतकही लगने से बाख जाती. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
बहुत बेहतरीन लेखन // तिरंगे की शान के लिये तो हम भारतीय ही रहेगें//। एक बेहद ज्वलंत विषय पर लाज़वाब लेखन । बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय वीर मेहता जी..
सुंदर ज्वलंत विषय पर देश भक्ति का रंग अद्भुत चित्रं , हार्दिक बधाई आदरणीय जी
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