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'उनको' नामक प्रतीक का सटीक इस्तेमाल करते हुए गजब की लघुकथा कही है आदरणीय वीर मेहता सर जी| एक एक पंक्ति पढने लायक है, साथ ही एक बार पढने के बाद फिर पढने को जी चाहता है| हमारी पहचान हमारे देश से ही है, सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई भाई जी||
बहुत ही गंभीर और विचारोत्तेजक लघुकथा कही है भाई वीर मेहता जी, जिसके लिए आप ढेर सारी बधाई के पात्र हैं। आ० सौरभ भाई जी ने जो कहा उसपर मेरे हस्ताक्षर भी समझे जाएँ।
वाह आदरणीय वीरेन्द्र मेहता साहब वाह, बहुत ही सुन्दर कथ्य के साथ लघुकथा आकार ली है, बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय वीरेन्दरजी
एक सामयिक विषय को लेकर अच्छी कथा हुई है , हार्दिक बधाई
बहुत ही संवेदन शील मुद्दे पर आधारित इस लघु कथा पर दिल से बधाई आ० वीरेंदर जी हर जगह अच्छे लोग भी हैं बुरे भी हैं कहने को हाजी साहब अपने को खुदा का बाँदा कहते हैं किन्तु मन में कलुषता अलगाव वादी भावना क्या खुदा ने सिखाई ?
एक सही सटीक सन्देश देती हुई प्रस्तुति .
सीमा सिंह जी ने जो भी कहा है वह ज़मीनी हकीकत है भाई विनोद जी, आप जो फरमा रहे है वह आदर्शवाद है जो हक़ीक़ी ज़िंदगी में नहीं पाया जाता। चुनाव और मजबूरी में ज़मीन आसमान का फर्क होता है मेरे अजीज़ दोस्त I
सूरज को छूने निकला था
आया हाथ अँधेरा..
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया सीमाजी..
शुभ-शुभ
सीमा जी
ऐसा भी होता है . अच्छी कथा है .
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