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आह और वाह दोनों निकल गए इस लघुकथा को पढ़कर । उसकी पहचान डॉरमेट्री में बिछने वाले चद्दर जैसी हो गयी है , छोटे जगहों से बड़े शहरों में जाने वाली तमाम लड़कियों की दास्तान है ये । बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिए आदरणीय शुभ्रांशु जी ..
आदरणीय विनय जी.
आपने अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीया कान्ता जी,
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी, इस लघुकथा का आधार तो बहुत ही बढ़िया है, "उसकी पहचान होटल के डॉरमेट्री में बिछने वाले चद्दर की हो गई है" यह पंक्ति तो गजब की है| प्रस्तुतिकरण को किसी व्यक्ति के साथ संवाद शैली में कर सकें तो यह शायद सशक्त लघुकथाओं में से एक बन जाए|
आदरणीय चन्द्रेश जी,
कथा की शैली को ले कर पहले भी बात हो चुकी है. कथा पर अपने विचार देने के लिय आभार,
सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु जी
इस कत्थ्य को कथा का रूप देते तो सुंदर लघु कथा बन सकती थी। हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर।
आदरणीय अखिलेश जी,
विचार देने के लिये आभार.
सादर.
पहचान
सेठ भुवन चन्द्र अपने सारे व्यवसाय व बंगले की ऊँची कीमत चुकाकर उसके मालिक अपने पुराने मुनीम को देखकर हैरान रह गए। जिसके पुत्र को ,अपनी बेटी का प्रेमी , देखकर कभी वह बौखलाकर उनसे उनकी औकात पूछ बैठे थे।
उस वक़्त मुनीम जी ने उनसे कुछ न कहा, अपने परिवार के साथ चुपचाप उस शहर को छोड़ दिया
आज बरसों बाद एक वफादार नमक हलाल की तरह सेठ जी को कर्ज मुक्त करने वापस शहर चले आए ।
बंशीलाल को अपनी ओर बढ़ते पाकर उनकी निगाह झुक गई और धड़कनें बेकाबू हो गईं थीं उसने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि दुर्दिनों में कभी मुनीम उनकी इस तरह उनसे अपने अपमान का बदला लेगा ।
क्या सोच में पड़ गये मुनीम ने कहा यह देखिये - रजिस्ट्री के कागज आपके नाम की है , “ बरसों पुराना नमक खाया हैं सरकार यूंहीं पहचान को मिटने नहीं देंगें ।
( मौलिक एवम् अप्रकाशित )
अच्छी लघु कथा लिखी है ज्योत्स्ना जी ,बहुत बहुत बधाई |
प्रिय ज्योत्स्ना जी, नाटकीयता की बजाये लघुकथा को साहित्यिक रंगत देने का प्रयास करें। यह तो किसी हिंदी फिल्म का कोई दृश्य लग रहा है।
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