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बहुत तीखा व्यंग आज की राजनितिक व्यवस्था पर , नेताओं के लिए किसी भी शैक्षणिक योग्यता की दरकार नहीं और छोटी सी नौकरी के लिए तमाम योग्यताएं । आखिरी पंक्ति को और मारक बना सकते थे आप । बहुत बहुत बधाई आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी..
लघुकथा की तह में जाकर इस गहन विश्लेष्ण के लिए हृदय से आभार आदरणीय विनय जी सर. आपका सुझाव सर आखों पर, मैं अंतिम पंक्ति के बारे और सोचता हूँ कि कैसे और मारक करें| सादर,
रचना को पसंद करने के लिये हार्दिक धन्यवाद आदरणीय माला झा जी
//यहाँ-वहां घूमने से और सिर्फ पहचान से जब आपको इतनी बड़ी कुर्सी मिल सकती है तो मेरे बेटे को छोटी सी नौकरी क्यों नहीं?"// एक जबर्दस्त कटाक्ष आज के राजनीतिक समाज पर...
सादर बधाई स्वीकार करे चंद्रेश भाई जी ..
आदरणीय वीर भाई जी, हार्दिक धन्यवाद आपको यह लघुकथा पसंद आई!!
एक अँगूठा टीप सड़क छाप गुण्डा जब नेता बना किसी कर्मचारी या कई बार तो थानेदारों को डपट सकता है, चपत रसीद सकता है तो किस सर्टिफिकेट के पीछे दौड़ें आज के युवा ? यह एक गहन समस्या है जिसे कलात्मक शब्द मिले हैं.
यों, आदरणीय विनयजी के कहे से मैं भी सहमत हूँ, आखिरी पंक्ति और संप्रेषणीय हो सकती थी.
लघुकथा केलिए हार्दिक बधाई आदरणीय चन्द्रेशजी..
जबरदस्त कटाक्ष वाह ... बड़ी बड़ी कुर्सी कासिल करने वालों के पास कितनी बड़ी डिग्रियां होती हैं आये दिन पढने को मिल जाता है अखबारों में .बहुत बढ़िया लघु कथा ,हार्दिक बधाई आपको चंद्रेश जी
लघुकथा के तल तक जाकर आपने उसे समझ लिया, आदरणीय राजेश कुमारी जी! हृदय से आभार आपका !
अधिकतर लोग नौकरी के लिए ऐसे रास्ते तलाशते मिल जायेंगे, अब ऐसे सवाल पर क्या कहें नेता जी, दरअसल नेता जी नेता वाली गुण दिखाए ही नहीं वरना आश्वासन का घूंट पिला देते फिर किसना भी खुश और नेता जी भी खुश. अच्छी लघुकथा पर बधाई आदरणीय चंद्रेश जी.
आदरणीय गणेश जी बागी सर, बिलकुल सही बताया आपने, आश्वासन देना नेता का गुण होता है, यदि दे देते तो दोनों खुश हो जाते! लघुकथा के इस गहन विश्लेषण के लिए हार्दिक आभार आपका| सादर,
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आदरणीय सौरभ पांडे जी, लघुकथा के अंतर्मन को समझ कर आपने जो यह गहन विश्लेषण किया है, मैं हृदय से आपका आभारी हूँ, आपका सुझाव सर आखों पर अंतिम पंक्ति को अधिक सम्प्रेषणीय करने हेतु सोच कर इसे बदलता हूँ |