आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा— नौकरानी
पतिपत्नी के नौकरी जाने के बाद बच्चों को संहालने, संस्कारित करने के साथसाथ मनोरंजन करवाने वाली एक अदद् नौकरानी उन्हें नहीं मिल रही थी.
' यह काम तुम ही करो. मैं तो आया कम बाई ढूंढढूंढ कर थक गया हूं.' पति ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा.
' बाई तो मिल रही है. वह सर्वगुण संपन्न भी है. मगर, हाथ साफ करना उस की फितरत में शामिल है. इस से बच्चे में क्या संस्कार आएंगे ?' पत्नी ने प्रश्न किया.
' संस्कार के लिए हम उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल देते हैं.'
' पिता हो कर, बच्चों को अपने से दूर करने की सोच रहे हो. ' पत्नी ने कहा, ' बच्चे मांबाप के पास रह कर संस्कारित होते हैं. यह अटल सत्य है.'
' हमें इतना समय कहां है ? उन्हें संस्कार दे सकें.' पति बोला , ' पैसा और ऐशोआराम के लिए नौकरी करना हमारी मजबूरी है.'
'मांबाप बच्चों के लिए अपने सब सुखआराम छोड़ देते हैं ?' पत्नी बोली, ' आप कहे तो मैं नौकरी से छुट्टी ले लूँ ?'
' तुम पहले ही बहुत छुट्टी ले चुकी हो. फिर यह समस्या का समाधान नहीं है ?' पति ने बात संहाली तो पत्नी उखड़ पड़ी, '' अब आप ही देखिए कि बच्चों की देखभाल और संस्कारित करने के लिए आप किस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं ?'
सुबह के ये संवाद याद करते हुए आफिस से थकीहारी आई पत्नी ने यह जानने की कोशिश की कि बच्चे कहाँ होंगे और क्या कर रहे होंगे . पति ने बच्चो के लिए कोई व्यवस्था की या नहीं ? तभी पत्नी को बच्चों के चहचहाने व हंसनेकूदने की आवाज आई तो उस ने कमरे में जा कर बच्चो से इशारे में पूछा, ' क्या बात है ? बहुत चहक रहे हो ?'
'हुरर्र रे ! पापाजी नानी को लेने गए है.' बच्चों ने चहक कर जवाब दिया तो पत्नी की आंखें पति के इस समाधान पर खुली के खुली रह गई, " क्या !"
बच्चों ने वही बात दोहरा दी.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
बहुत बढ़िया रचना, अच्छा तरीका निकाला पिता ने| बधाई आपको इस रचना के लिए
आदरणीय विनय कुमार जी आप को लघुकथा अच्छी लगी. आभार आप का.
आ० नीड की ओर का भाव इस कथा में है या नही इसके लिए गुणिगण की राय जानी को उत्सुक हूँ . सादर .
शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायण जी आप के मतांकन के लिए.
मुहतरम जनाब ओम प्रकाश साहिब, प्रदत्त विषय पर संदेश देती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आप का शुक्रिया, लघुकथा को अपना समर्थन देने के लिए.
आद0 ओमप्रकाश क्षत्रिय जी सादर अभिवादन। उत्तम लघुकथा पर आपको अनन्त बधाई। कथानक को और कसा जा सकता है। बीच बीच मे थोड़ा अटपटा सा हो जा रहा है। आपने शायद नानी दादी के संस्कारों की ओर ले जाने का प्रयास किया है। सच भी है जो संस्कार दादी नानी देंगी वह कोई और नहीं। और यह एक तरहः से नीड़ की ओर जाने की बात सार्थक कर रही है।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आभार आप का. इतनी बढ़िया और सुंदर-सटीक टिप्पणी के लिए.
भले ही बच्चों की नानी कोअपने यहाँ बुलाना प्रथमदृश्या उन लोगों का निजी स्वार्थ लग सकता है, लेकिन कुल मिलाकर इसमें बच्चों और घर की चिंता तो शामिल है ही. अर्थात कामकाजी होते हुए भी उन लोगों ने अपने कैरियर की बजाय घर को प्राथमिकता दी. लघुकथा प्रदत्त विषयानुकूल है और सन्देश भी सार्थक दे रही है जिस हेतु आप बधाई के पात्र हैं आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाईजी.
आदरणीय भाई साहब. प्रणाम./ आप के प्रतिक्रिया मुझे हमेशा उत्साहित करती है. वे हमेशा कुछ न कुछ सिखा जाती हैं. यह हमारे लिए अमूल्य धरोहर होती है. आप का शुक्रिया आदरणीय लघुकथा पर अमूल्य मत और हौसलाअफजाई करने के लिए.
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