आदरणीय साथिओ,
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वापिसी एेसी भी जानते बूझते हुये छलावे का शिकार होना पीड़ादायक परिस्थतियों का सामना करना दुखद ।बधाई आद० मनन कुमार सिंह जी ।
आपका आभार आदरणीया नीता जी।
आभार आदरणीय सतविंदर जी।
आदरणीय मनन जी चिन्तन मनन से भरपूर बहुत आकर्षक रचना के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय छोटेलाल जी।
आधी रोटी (नीड की ओर )
.
अनवर बेरोज़गारी और लोगों के तानों से तंग आकर रोज़ी की खातिर शाहिद के साथ बम्बई तो आ गया मगर उसके हालात देख कर दंग रह गया |वो शाहिद से बोला:
"तुम गाँव जाते हो तो अच्छे अच्छे कपड़ों में नज़र आते हो ,मगर यहाँ ?"
शाहिद बीच में ही बोल दिया:
"यहाँ का हाल वहाँ मत बताना ,यह करीम सेठ की बेकरी है, मैं यहाँ काम करता हूँ और रात को स्टोर में सो जाता हूँ "
अनवर ने फिर पूछा "अलग कमरा क्यूँ नहीं ले लेते हो "
शाहिद ने जवाब में कहा " हम अलग कमरा या खोली लेकर रहने लगे तो कुछ भी नहीं बचा पाएँगे "
अनवर ने फिर काम के बारे में पूछा" क्या काम करना होगा "
शाहिद ने कहा " जो इलाक़ा मेरे पास है ,वहाँ सवेरे चार बजे उठ कर घरों में पाव / ब्रेड पहुँचाना है "
अनवर यह सुनते ही खड़ा हो गया और बोलने लगा " यह तो एक मज़दूर से बुरी ज़िंदगी है "
शाहिद ने अनवर के काँधे पर हाथ रख कर कहा "नोट कमाने के लिए सब कुछ करना पड़ता है "
अनवर ने मायूस हो कर कहा:
"इस ज़िंदगी से तो गाँव की ज़िंदगी अच्छी है ,मज़दूरी ही करनी है तो गाँव कौन सा बुरा है ,वहाँ कम से कम सोने को अपनी छत और खाने को आधी रोटी तो मिल ही जाएगी | "
यह कहते हुए अनवर अपना सामान बैग में रखते हुए शाहिद से बोला:
"रेलवे स्टेशन को कितने नंबर की बस जाती है ?"
( मौलिक व अप्रकाशित )
घर वापसी की सुंदर कथा. बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब .
मुहतरम जनाब ओम प्रकाश साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
वाह , तस्दीक भाई , बढ़िया कथा हुयी है .
मुहतरम जनाब गोपाल भाई साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
यह बात सबको समझ में आये तो पलायन रुक जाए, बढ़िया रचना, बधाई आपको
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